लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट

एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560
आईएसबीएन :9781613015568

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

429 पाठक हैं

'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


'मैंने अपना सब कुछ दे दिया। अपना भविष्य इस युवक के कँधों पर रख दिया, तुम रुष्ट तो नहीं?'

'मैं...मैं भला क्यों रुष्ट होने लगी?' धीमी-सी हँसी छोड़ते हुए वह बोली।

'न जाने मेरा मन क्यों उस युवक की ओर खिंचा जा रहा है!'

'अब समझी!'

'क्या?'

'यह स्वाभाविक ही है। बुढ़ापे में संतान न हो तो इसी भाँति मन दूसरों को अपनाने लग जाता है।'

'तो हम बूढ़े हो गए?'

'नहीं-नहीं, अभी तो जवानी की कलियां फूट रही हैं!'

इस बात पर दोनों की हँसी एक संगीत-सा भर गई और कुछ रुकते हुए विनोद बोला-
'काश! आज मैं स्वस्थ होता तो स्वयं उसे लेने वहाँ जाता!'

'कहिए तो यह सेवा मैं कर दूँ?' क्षण-भर रुकते हुए वह बोली।

'सच! तुम जाओगी! मेरे रमन को लेने!' वह अनायास कह उठा। उसकी मानसिक प्रसन्नता आँसुओं के रूप में झलक आई।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय