ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
34
फाटक पर साइकिल की घण्टी बजते ही माधवी बाहर वाले बरामदे की ओर भागी। पोस्टमैन तार लिए खड़ा था। उसने शीघ्र उसके हाथ से तार लिया और उसे फाड़ने लगी, परन्तु सहसा कुछ सोचकर रुक गई। तार मुखर्जी के नाम था।
जब वह कमरे में आई तो विनोद बिस्तर पर लेटा आराम कर रहा था। आहट होते ही उसने आँखें खोलीं और माधवी से पूछा-'कौन था?'
'तार आया है। माधवी ने धीमे स्वर में उत्तर दिया।'
'किसका?'
'आपके नाम।'
'खोल लो!'
माधवी ने लिफाफा खोला और घबराहट में सांस रोके तार पढ़ने लगी। चन्द क्षण के मौन के पश्चात् वह बोली-'रमन का तार है, आज शामकी बस से वह यहां पहुँच रहा है।
'ओह!' कुहनियों के बल बैठने का प्रयत्न करते हुए वह बोला। माधवी झट से उसके तकिये पर बैठ गई और उसे सहारा देकर उसका घायल सिर उसने अपनी गोद में रख लिया।
'माधवी!' सांत्वना का लम्बा साँस खींचते हुए बोला।
'जी?'
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