ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
'खाना साधारण हो, किसी प्रकार का विशेष कष्ट न किया जाए।'
'ठीक है!' मुस्कराते हुए रमन ने उससे हाथ मिलाया और चला गया।
विनोद आज एक नये संसार में आया था। बरसों के बाद जीवन में फिर से हलचल आ गई। आज फिर उसकी उँगलियाँ खुले वातावरण में मचलने लगीं। उसका मस्तिष्क फिर ऊँचाई की ओर अग्रसर होने लगा।
रमन के यहाँ जाते हुए न जाने क्यों उसका हृदय अज्ञात भय से धड़कने लगा। बड़े समय से वह किसी के यहाँ न गया था। गाड़ी में बैठे हुए रमन ने उसे बताया कि उन्होंने पटेल नगर की नई बस्ती में अपना एक छोटा-सा मकान बनवाया है।
'परन्तु रमन, मुझे उस घर में किससे मिलना होगा?'
केवल मेरी माँ से।'
'और दूसरा?'
'और कोई नहीं...मैं अकेला हूँ। मेरे पिताजी बचपन में हमें छोड़ गए थे।'
'ओह!' विनोद ने एक निःश्वास खींचा।
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