ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
अगले दिन बोर्ड की मीटिंग हुई। रमन ने विनोद का परिचय बोर्ड के प्रतिनिधियों से करवाया और उन्हें बताया कि वह एक निपुण इंजीनियर है। उसकी स्कीम के विषय में उससे कई प्रश्न किए गए जिनका उसने उचित उत्तर दिया।
सरकार ने उसकी योजना को कार्यान्वित करने के लिए उसे दो हज़ार रुपये मासिक भेंट किए और प्रोजेक्ट का वर्क्स-मैनेजर नियुक्त किया। विनोद ने प्रसन्नतापूर्वक इस नियुक्ति को स्वीकार किया और कम-से-कम लागत पर थोड़े समय में काम को समाप्त कर देने का आश्वासन दिलाया। यह जानकर उसे और भी प्रसन्नता हुई कि वह इस काम में अकेला नहीं, बल्कि उसके चार सहायक इंजीनियर भी होंगे, इन्हीं में रमन भी था। इस उपलक्ष्य में सरकार की ओर से एक भोज का आयोजन भी किया गया और सबके सामने इस विशाल कार्य को पूरा करने के लिए विनोद की बड़ी सराहना की गई।
इतनी बड़ी प्रसन्नता को वह अकेले न समेट सका और उसने अवकाश पाते ही उसकी सूचना माधवी तक पहुँचा दी। वह अपने लिए मान या आदर का इतना इच्छुक न था, जितनी प्रसन्नता उसे इस बात की थी कि बरसों बाद आज उसकी स्कीम दुनिया के सामने आ रही है; उसकी कल्पनाएँ साकार हो रही हैं।
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