लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट

एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560
आईएसबीएन :9781613015568

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

429 पाठक हैं

'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


'मैंने इससे इन्कार कब किया है?'

'यों नहीं...आपको मेरे साथ दिल्ली चलना पड़ेगा।

'वह क्यों?'

'योजना और विकास-मंत्री से भेंट करने। मैं आपकी सहायता करूँगा। जब हमारे देश में इतने योग्य इंजीनियर हैं तो हमें विदेशों से भीख माँगने और अपना धन लुटाने की क्या आवश्यकता है?'

'नहीं मिस्टर रमन, मैं जो भी हूँ वह मैं स्वयं जानता हूँ। मेरे जीवन की दोपहर ढल रही है और तुमने अभी जीवन की सुनहरी घड़ियों में पाँव रखा है।'

'ठीक है, आप अनुभवी सही, परन्तु मेरा अनुमान गलत नहीं।'

'तो एक काम करो!'

'क्या?'

'इस बहुमूल्य योजना का लाभ उठाओ और इसे मेरी ओर से सरकार तक पहुँचाओ।'

'और आप?'

'मैं उस दिन की प्रतीक्षा करूँगा जब तुम मेरे सपनों को वास्तविकता में बदल दोगे।'

'सच! पर मिस्टर मुखर्जी, मैं अभी नया हूँ, कोई अनुभव नहीं; कल की बात कह नहीं सकता, परन्तु वचन देता हूँ कि आपके सपनों को वास्तविकता में बदलने में अपनी ओर से पूरा प्रयत्न करूँगा।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय