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एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560
आईएसबीएन :9781613015568

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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


'कुछ नहीं...मेरा तो विचार ही है केवल...परन्तु आप बेहतर समझते हैं। मैं क्या कहूँ! हाँ, फिर विचार कीजिए।

वाटसन इस पर सहमत न हुआ, परन्तु रमन ने उसकी बातों को बड़े ध्यानपूर्वक सुना। डाकबँगले की ओर लौटते हुए विनोद ने रमन को अपने यहाँ आने का निमन्त्रण दिया।

रमन पहले से ही यह चाह रहा था कि वह इस वातावरण से अलग उससे मिले; सो उसने हर्षपूर्वक उसका निमंत्रण स्वीकार किया और वाटसन से कहकर उसके साथ चला आया। रमन नया-नया कॉलिज से आया था इसलिए हर परामर्श और अनुभव से लाभ उठाना चाहता था। विदेशी इंजीनियरों के साथ काम करने का उसे कॉलिज से निकलते ही अवसर प्राप्त हो गया। विनोद यह जानकर अति प्रसन्न हुआ कि वह इंजीनियरिंग की परीक्षा में महाविद्यालय में प्रथम रहा।

घर पहुँचकर विनोद ने रमन की भेंट माधवी से करवाई और उसे शीघ्र ही चाय का प्रबन्ध करने को कहा। आज बड़े समय पश्चात् उसके घर किसी अतिथि ने पाँव रखे थे। उसे देखकर माधवी का मुख खिल उठा और वह उसका सत्कार करने में लग गई। रमन अपना अत्यधिक आदर देखकर मन-ही-मन लज्जित हो रहा था।

तीनों ने इकट्ठे बैठकर चाय पी और बड़ी देर तक बातें करते रहे। उसकी प्रार्थना पर रमन को रात के खाने के लिए भी वहीं रुकना पड़ा।

जब माधवी खाना बना रही थी तो दोनों गोल कमरे में बैठकर ब्रह्मपुत्र पर बनाए जाने वाले बाँध की बातें करने लगे। विनोद ने उस नदी के आसपास की सब घाटियों के नक्शे उसके सामने रखते हुए उसे बताया कि वह एक समय से इसी छानबीन में लगा हुआ था।

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