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एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560
आईएसबीएन :9781613015568

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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


विनोद झट से उठा और केथू से बोला-'आओ!' इस समय सहसा उसकी आँखों में एक चमक-सी आ गई।

माधवी ने उसका रास्ता रोकते हुए कहा-'कहाँ?'

'सुना नहीं तुमने? कोई मेरे सपनों को वास्तविकता का रूप देने आया है।'

'कब लौटिएगा?'

'शीघ्र।' यह कहते हुए विनोद पागलों की भाँति अपनी मोटर की ओर लपका और केथू को साथ लेकर नदी की ओर हो लिया। उसकी उँगलियाँ अनायास ही कुछ करने के लिए आज फिर मचलने लगीं, मानो एक वाक्य ने उसके शिथिल अंगों में प्राण भर दिए हों।

वे उस स्थान पर पहुँच गए जहाँ विशेषज्ञों की टोली पहले ही से छानबीन कर रही थी। मोटर गाड़ी को सड़क पर लगाकर वह उस घाटी में उतर गया जहाँ नक्शे तैयार हो रहे थे।

विनोद ने स्वयं अपना परिचय दिया और उनकी योजनाओं के विषय में जानकारी प्राप्त करने लगा। योजना-कार्य वाटसन नामक एक जर्मन इंजीनियर की अध्यक्षता में हो रहा था। उसकी सहायता के लिए दो भारतीय इंजीनियर, कुछ ड्राफ्ट्समैन और क्लर्क थे जो इस घाटी में बाँध बनाने के लिए छानबीन कर रहे थे।

बातों-बातों में जब उन्हें पता चला कि विनोद इन बातों को भली-भाँति समझता है तो वे उसमें अधिक रुचि दिखाने लगे। विनोद ने उन्हें बताया कि वह बाँध की योजना बनाकर कई बार सरकार को दे चुका है, परन्तु हर बार वह अस्वीकार कर दी गई है।

जर्मन इंजीनियर वाटसन ने उसकी बातों पर अधिक ध्यान न दिया, परन्तु उसके सहायक मिस्टर पीयरसन और मिस्टर रमन ने विनोद की बातें ध्यानपूर्वक सुनीं। पीयरसन ऐंग्लो-इण्डियन था इसलिए विनोद का अधिक ध्यान रमन की ही ओर रहा।

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