ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
'मैं नहीं जा सकता। घर के किसी नौकर को साथ लेकर चली जाओ।'
कामिनी ने इस बात का कोई उत्तर न दिया और अपने कमरे की ओर भाग गई।
विनोद ने सीढ़ियों पर खड़े होकर उसके कमरे में झाँका-वह औंधी लेटी पलँग पर रो रही थी। उसकी सिसकियों की ध्वनि स्पष्ट सुनाई दे रही थी।
विनोद ने सोचा कि उसे अब बुद्धि से कोई विधि निकालनी चाहिए; केवल क्रोध और चिंता में तो जीवन दूभर हो जाएगा। यदि वह अपने मायके न गई तो सदा के लिए उसके गले का फँदा बनकर रह जाएगी।
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