ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
वह बच्चा, उसका अपना बच्चा न जाने किस द्वार की ठोकरें खा रहा होगा! कौन जाने वह मां के अधिक लाड़-प्यार से बिगड़कर घर से भाग गया हो और कहीं आवारा घूम रहा हो और वह ममता की मारी उसकी खोज में भटक रही हो! आज के समाज में और इस रुपये-पैसे की दुनिया में उसका कोई स्थान न होगा। अब तो वह बड़ा हो गया होगा।
वह अपनी बेचैनी मिटाने के लिए झट से मुड़ा और बढ़कर माधवी को अपने आलिंगन में ले लिया और भावुकता से उसे कहने लगा-'मुझे क्षमा कर दो, माधवी! मुझे क्षमा कर दो! मुझे कुछ समझ में नहीं आता मैं क्या करूँ?'
माधवी उसकी यह अचानक बेचैनी देखकर विस्मित हो गई। उसने प्रश्न करना उचित न समझा और उसे विचारों के संसार से निकालते हुए बोली-'भूल जाइये बीती बातों को! आइए, चलें!'
'कहाँ?'
'उस पार।'
'उस पार?' आश्चर्य में उसने ये शब्द दोहराए।
'हाँ, उन हिमपूर्ण शिखाओं के पीछे!'
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