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एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560
आईएसबीएन :9781613015568

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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


'आप को किसीका सहारा लेना होगा।'

'किसका?'

'मेरे सिवा और है ही कौन?'

'तो क्या तुम...'    

'हाँ, कठिनाई का सामना करना है तो अपनी हर उलझन में मुझे सम्मिलित कर लीजिए, वरना...'

'सच?' विनोद ने उसे अपने निकट खींचते हुए कहा। सर्द वातावरण में दोनों की साँस भाप छोड़ती हुई निकली और मिलकर गुम हो गई।

एक पहाड़ी लड़की भीतर आई और कहवे के दो प्याले रख गई। दोनों धीरे-धीरे गर्म कहवा पीने लगे। दूर एक हिमपूर्ण शिखा पर पर्वतारोहण करने वाली टोली कुछ शेरपाओं की सहायता से ऊपर जाने वाले मार्ग की जाँच करती दिखाई देती थी।

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