ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
उसी साँझ विनोद ने दो घोड़े मँगवाए और माधवी को साथ लेकर उन पहाड़ियों में निकल गया। प्रकृति के सुन्दर दृश्यों में कुछ देर के लिए उसकी मानसिक चिंताएँ दब गईं। ब्रह्मपुत्र नदी की कठोरता, कम्पनी के झगड़े और कम्पनी की याद बिसराकरवह उसे किसी और मंज़िल की ओर ले गया। कालिंगा की बर्फीली पहाड़ियों के आँचल में उन्होंने पड़ाव डाला और डाकबँगले में जा ठहरे।
उनसे पहले एक अंग्रेज़, दो फ्रांसीसी और दो हिन्दुस्तानियों की एक टोली भी वहाँ ठहरी हुई थी। ये लोग हिमालय की सबसे ऊँची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का प्रयत्न कर रहे थे। उनका यह साहस देखकर विनोद माधवी से बोला-'इन्हीं को ही लो! दुनिया-भर को भूलकर ये किस धुन में लगे हुए हैं।'
'निःस्वार्थ धुन...ये किसी-न-किसी दिन अवश्य सफल होंगे।'
'ये उस शिखर पर चढ़ने में सफल हो जाएँगे, तो क्या मैं अपनी धुन में असफल रहूँगा?'
'बिल्कुल!'
'वह क्यों?'
'ये अपने कार्य में अकेले नहीं पाँच हैं। एक गिरेगा तो दूसरा सँभाल लेगा। परन्तु आप तो अकेले हैं।'
'तो...'
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