ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
सवेरा होते ही आसपास की बस्तियों में भी हाहाकार मच गया और लोग भागे हुए इधर आने लगे। शताब्दियों से दुख के मारे हुए गरीब व्यक्ति आँखों में चिन्ता और भय लिए बढ़ते चले आ रहे थे। हर कोई इस प्राकृतिक प्रकोप से बचकर भागने की चिन्ता में था।
अन्त में वही हुआ जो विलियम चाहता था। लोग मुनि बाबा के चरणों की धूल अपने मस्तक पर लगाकर उनके सम्मुख गिड़गिड़ाने लगे और उन्हें इस आपत्ति से बचाने के लिए विनय करने लगे। वह जानते थे कि ब्रह्मपुत्र यदि क्रोध की अग्नि बरसाना आरम्भ कर देगी तो उनकी धरती तक निगल जाएगी।
मुनि बाबा की आज्ञानुसार सब लोगों ने गिरजों में जाकर आश्रय लिया और पादरियों के कहने पर गिड़गिड़ाकर प्रार्थना करने लगे। इस आपत्ति में मिशन वालों ने जी खोलकर उनकी सहायता की; और इसका प्रभाव उनपर होना आवश्यक था। कितने ही व्यक्तियों ने ईसाई धर्म अपना लिया और दूसरों को अपने साथ मिलाने के लिए धर्म-प्रचार करने लगे।
विनोद यह नहीं चाहता था कि लोग अपना धर्म त्यागकर ईसाई बन जाएँ। उसने उन्हें समझाने का बड़ा प्रयत्न किया, परन्तु सब व्यर्थ। मुनि बाबा का भय, यह आपत्ति और जीवन की सुविधाएँ छोड़कर वे भला उसकी बातें क्यों मानते? यहाँ तक कि विनोद के यहाँ ठहरे हुए लोग भी अवसर पाकर मिशन की टोलियों में सम्मिलित हो गए।
उनकी मूर्खता पर खेद प्रकट करता हुआ वह केथू के साथ बैठा विचारों में डूबा हुआ था कि कोई उनके खेतों की ओर से सरपट भागता हुआ दिखाई दिया। माधवी और रजनिया भी देखने के लिए बाहर निकल आईं।
पास आने पर उस व्यक्ति ने अपनी भाषा में केथू को बताया कि ब्रह्मपुत्र अब उनकी धरती निगल रही है। खेतों में पानी भर चुका था और अब वह किनारे की ज़मीन को काटकर साथ बहाए लिए जा रही थी। उनका दुर्भाग्य उनकी आँखों के सामने था!
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