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एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560
आईएसबीएन :9781613015568

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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


मुनि बाबा बात सुनते ही जोर से हँसने लगे और विलियम मुस्कराता हुआ कुटिया से बाहर आ गया। मुनि बाबा को बाहर आते हुए देख कर उसके चेले भीतर भागे और विषैली हँसी छोड़ते हुए विलियम के साथ जीप में बैठ गए। वह जानता था कि जब भी मुनि बाबा ऐसी विषैली हंसी हँसते हैं, उसकी बात अवश्य पूरी कर देते हैं। और फिर आज तो पूरे पाँच सौ उनकी भेंट चढ़ाए गए थे। आज वह अपने शिष्य पर अति प्रसन्न थे।

सुबह की किरणों को घनघोर घटाओं ने घेर रखा था। घाटी में अँधरा बढ़ रहा था। काले भयानक बादल मस्त हाथियों की भाँति आकाश में एक-दूसरे से जूझ रहे थे।

ज्योंही लोग खेतों में जाने के लिए टूटी-कुटी झोपड़ियों से बाहर निकले, उनके मन पर किसी अज्ञात भय ने अधिकार जमा लिया। हर स्थान पर, पेड़ों के तनों, दरवाजों और गीली दीवारों पर विचित्र खूनी पंजों के चिह्न दिखाई दे रहे थे। बस्ती में जब कभी कोई बड़ी आपत्ति आती, उससे कुछ ऐसे ही चिह्न प्रकट होते। यह किसी महान् आपत्ति की पूर्व-सूचना थी, प्रकृति के किसी कोप की। लोग डर रहे थे।

ब्रह्मपुत्र में बाढ़ आ चुकी थी। बाढ़ का पानी बढ़ता हुआ इस घाटी को अपनी लपेट में लेने वाला था। इसका ज्ञान यहां के लोगों को न था, परन्तु यह खूनी पंजों के चिह्न देखकर उन्हें किसी भयंकर दुर्घटना के होने का विश्वास हो रहा था। लोग काम पर जाते-जाते रुक गए और टोलियाँ बनाकर मुनि बाबा के डेरे पर इकटठे हो गए। मुनि बाबा और विलियम दोनों प्रसन्न थे-एक तो यह देखकर कि लोगों के मन पर उसका कितना अधिकार है और दूसरा यह जानकर कि उनका तीर निशाने पर लगा था।

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