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एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560
आईएसबीएन :9781613015568

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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


मुनि बाबा बस्ती वालों का माना हुआ साधु था। सब व्यक्ति अपनी कामना-पूर्ति के लिए उसीके पास आते थे। बस्ती वालों का अपना कोई धर्म या देवता न था। वे समाधि लगाने वालों का बड़ा आदर करते थे और मुनि बाबा का इनमें विशेष स्थान था।

मुनि बाबा कम्पनी का अपना साधु था। प्रतिवर्ष उसे एक बँधी हुई रकम कम्पनी की तरफ से दी जाती। बस्ती के जंगली लोगों पर अधिकार के लिए इसी की सहायता ली जाती थी और वह अपने टोनों और चमत्कारों द्वारा इन मूर्ख लोगों को खूब बहकाता था।

विलियम ने जीप मुनि बाबा की कुटी के बाहर रोकी और सीधा भीतर आया। मुनि बाबा आँखें बन्द किए समाधि में बैठे थे। विलियम ने झुककर उन्हें प्रणाम किया और मुनि बाबा ने एक आँख खोलकर चोर-दृष्टि से उधर देखा। आँख मिलते ही विलियम ने संकेत किया। मुनि बाबा उसका आशय समझ गए और उन्होंने पास बैठे चेलों को हाथ से बाहर चले जाने का आदेश दिया।

जब कुटिया में दोनों रह गए तो विलियम उनके निकट जा बैठा और उसने जेब से नोटों की एक गड्डी निकालकर उनकी झोली में रख दी। मुनि बाबा खांसते हुए बोले-'बोल बच्चा?'

'ब्रह्मा हमसे रुष्ट हो गए हैं-ज़ोर की बाढ़ आ रही है।'

'तो फिर?'

विलियम ने भय और घबराहट से साँस रोक ली और चारों ओर कुटिया में दृष्टि घुमाकर देखा। वहाँ किसीको न पाकर उसने मुनि बाबा के कान में धीरे से कुछ कहा।

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