ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
|
8 पाठकों को प्रिय 429 पाठक हैं |
'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
'उसका प्रबन्ध मैं स्वयं करूंगा।'
'वह कैसे?'
'तुम जानते ही हो, बस्ती वाले प्रतिदिन हमारे विरुद्ध होते जा रहे हैं।'
'हां, तो?'
'और ईसाइयों के विरुद्ध काफी प्रचार हो रहा है।'
'हाँ, तो?'
'इस अवसर का लाभ उठाना चाहिये।'
'वह कैसे?'
'अपना विश्वास जमाकर। इसमें सेवा और बुद्धि दोनों की आवश्यकता है।'
'तो क्या करना होगा?'
'यह सब मुझ पर छोड़ दों...मैं अभी बोर्ड की मीटिंग बुलाता हूँ।'
विलियम ने अवसर से लाभ उठाया और कम्पनी के अफसरों के अतिरिक्त किसी को यह न बताया गया कि नदी का पानी उनकी घाटी में आपत्ति ला रहा है।
विलियम जीप में बैठकर सीधा बस्ती की ओर हो लिया। वह आज एक ऐसा दांव खेलना चाहता था कि जिसके सफल हो जाने से वह लोगों को सदा के लिए खरीद लेगा। आज वह उनके मुनि बाबा से मिलने जा रहा था।
|