ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
इधर विनोद की अनुपस्थिति और माधवी की बीमारी ने विलियम को काफी अवसर दे दिया कि वह फिर मजदूरों के मन पर अपना आधिपत्य जमा ले। वह दिन-रात इसी उलझन में रहता कि किसी प्रकार विनोद को नीचा दिखाए। वह उसके चुनाव वाले दिन के अपमान का बदला लेने के लिए व्याकुल था। उसे कई युक्तियाँ सूझती, परन्तु वे बुलबुले की भाँति बैठ जातीं। वह जानता था कि विनोद से टक्कर लेना पर्वत से टक्कर लेना है।
एक शाम वह कम्पनी की आब्जर्वेटरी में बैठा था। सूचना मिली कि ब्रह्मपुत्र में बाढ़ का पानी चढ़ रहा है। एकाएक उसके मस्तिष्क में एक भयानक विचार ने अँगड़ाई ली। वह क्षण-भर के लिए किसी सोच में डूब गया और फिर झट इंचार्ज से पूछने लगा-'कितना पानी?'
'दस हजार क्यूबिक फुट।'
'कब तक?'
'कल रात तक...तूफान का भय है।
'तो क्या?'
'यह सूचना तुरन्त गाँव में पहुंच जानी चाहिए वरना...'
'नहीं, मिस्टर डेविड। किसी को कानोकान यह सूचना न पहुँचे।
'तो...?'
'कम्पनी की कोठियां चुपचाप खाली की जाएँगी।'
'और बस्ती में?'
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