ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
'क्या?'
'बच्चा मुर्दा हुआ है!'
'और माधवी?'
'ठीक है...परन्तु होश आने में समय लगेगा।'
'तो, क्या मैं...'
'नहीं, अभी आपको और प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।' लेडी डॉक्टर चली गई परन्तु विनोद के मन की घबराहट कम न हुई। उसके मन का संतुलन बिगड़ चुका था। उसने दृष्टि उठाकर सामने वाले स्तम्भ की ओर देखा-वह स्त्री जा चुकी थी। वर्षा के छींटे नर्म पड़ चुके थे। केथू और रजनिया कम्बलों में लिपटे हुए यों ही बैठे थे।
माधवी को होश आते ही डाक्टर ने विनोद को उसके कमरे में बुलवा भेजा। वह द्वार पर दृष्टि लगाए उसकी प्रतीक्षा में थी। दोनों ने एक-दूसरे को देखा और माधवी की आँखों में से आंसू छलक पड़े। उसने एक-दो बार उससे बात करने के लिए होंठों को हिलाया, परन्तु विनोद ने उसके खुलते होंठों पर अपनी उंगलियों रख दीं और उसे बोलने से मना कर दिया।
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