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एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560
आईएसबीएन :9781613015568

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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


विनोद को यों लगा मानो वह उसकी अपनी कामिनी हो जो खड़ी उसकी प्रतीक्षा कर रही है; रास्ता देखते-देखते उसकी आँखें पथरा गई हैं और उसके हृदय की धड़कन अपने अन्तिम सरगम में है। उसका सिर चकरा गया। एक साथ कई चीजों की ध्वनि उसके कानों में एक भयानक गूँज उत्पन्न करने लगी जो धीरे-धीरे बहुत से भारी पाँवों की आहट में परिवर्तित हो गई। उसे लगा मानो वे पाँव उसकी ओर आ रहे हों और उसे कुचलकर बढ़ जाएँगे। घबराहट में उसने आँखें बन्द कर लीं।

एकाएक वह चौंक पड़ा और उसने आँखें खोल दीं। सामने लेडी डॉक्टर स्मिथ और नर्स हाथ में एक कागज़ लिए खड़ी थीं। लेडी डॉक्टर ने कागज़ बढ़ाते हुए उसे उस पर हस्ताक्षर करने का संकेत किया। विनोद अभी तक आश्चर्य में डूबा एकटक उसकी ओर देखता रहा।

'मिस्टर मुखर्जी, सिगनेचर्ज़ प्लीज़! केस सीरियस है...ऑपरेशन होगा।'

विनोद ने काँपती उँगलियों से लिखित कागज़ पर हस्ताक्षर कर दिए और साहस पटोरकर उठते-उठते हुए बोला-'डॉक्टर! माधवी...मेरा जीवन है...और मेरा जीवन लेने से पहले...'

'ओह...डौन्ट वरी! धैर्य मत छोड़ो!'

यह कहकर लेडी डॉक्टर ऑपरेशन-थियेटर में लौट गई और वह वहीं खड़ा उसे देखता रह गया।

दो घण्टे की कड़ी प्रतीक्षा के पश्चात् ऑपरेशन समाप्त हुआ। विनोद ने देखा-बाहर निकलते समय लेडी डॉक्टर का मुख पहले से गम्भीर था। उसने डरते हुए सहमे मन से पूछा-'क्या...डॉक्टर...'

'आई एम वेरी सॉरी, मिस्टर मुखर्जी!'

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