ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
केथू की बात से विनोद को साहस मिला और माधवी को मिशन अस्पताल में ले-जाने को तैयार हो गया। उसने उसे सावधानी से कम्बल में लपेटकर गाड़ी में लिटा दिया और रजनिया सहारा दिए उसके पास बैठ गई।
मोटर गाड़ी इस तूफानी बरसात में मिशन अस्पताल की ओर भागी जा रही थी। कच्ची सड़क पर पानी यों चल रहा था मानो छोटी-छोटी कई नदियाँ एक साथ घाटी में फुट पड़ी हों। बिजली की चमक से क्षण-भर के लिए वातावरण में चकाचौंध उजाला हो जाता और फिर भयानक गर्जन हृदयों में कम्पन्न उत्पन्न करके अँधेरे में लुप्त हो जाती। कभी-कभी माधवी के पीड़ा से कराहने की ध्वनि वातावरण को हिला देती।
विनोद तेज़ी से मोटर को अस्पताल के फाटक में से सीधा बाहर वाले बरामदे तक ले गया। ज्योंही वह गाड़ी से उतरकर भीतर की ओर लपका कि लेडी डॉक्टर मिस स्मिथ बाहर निकली।
'डॉक्टर।'
'यस...मिस्टर मुखर्जी!'
'आपका रोगी हाज़िर है।'
'ओह...योर वाइफ! मिस्टर मुखर्जी, मुझे अफसोस है मैं वहाँ न आ सकी।'
'कोई बात नहीं! देखिए, जल्दी कीजिए, वह बहुत बेचैन है।'
'घबराओ नहीं! पहली बार है, सब ठीक हो जाएगा।'
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