ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
वर्षा की एक तूफानी रात थी। आसाम की घनी घाटियों में उमड़कर आए हुए मेघदूत जाने का नाम न लेते थे। सर्वत्र जल-थल था। वर्षा की तेज़ बौछार भीगी रातों को और ठण्डा किए जा रही थी। बाहर कड़ाके की सर्दी थी। विनोद और रजनिया माधवी के पास बैठे उसे गर्म रखने का प्रयत्न कर रहे थे। उसे समय से पहले ही पीड़ा आरम्भ हो गई और इससे विनोद की चिंता बढ़ गई।
उस बस्ती में कम्पनी के मिशन अस्पताल के अतिरिक्त और कोई अस्पताल न था। विनोद ने विवशत: केथू को वहाँ की बड़ी लेडी डॉक्टर को बुलाने के लिए भेजा था। हर आहट पर वह बंद खिडकी के शीशे से बाहर झांककर देखने लग जाता, परन्तु वहाँ केथू का चिह्न भी न था। घबराहट और प्रतीक्षा ने उसकी चिंता बढ़ा दी।
केथू को निराश लौटना पड़ा। लेडी डॉक्टर ने वहाँ आना स्वीकार न किया। उसे माधवी को ही वहां ले जाना था। वह जानता था कि वह किसी प्रकार उसे वहां ले जाने में सफल न होगा, क्योंकि अब वह अंग्रेज़ अफसरों और मिशन वालों की आँखों में खटकने लगा था। वह चिन्ता में था कि क्या करे! तनिक-सी असवाधानी भी माधवी के प्राण ले सकती थी!
केथू ने परामर्श दिया कि माधवी को अस्पताल ही ले जाया जाए। समय आपसी द्वेष और वैर का नहीं, उसके जीवन और मत्यु का प्रश्न है। इस समय उसे मिशन वालों के सामने झुकना ही होगा। लेडी डॉक्टर किसी भी मूल्य पर यहाँ नहीं आयेगी।
'यदि उन्होंने जान-बूझकर माधवी...'
'नहीं-नहीं, आप ऐसा मत सोचिए! कोई जाति, कोई धर्म हो; परन्तु प्रत्येक में सहानुभूति है। अन्तर केवल हमारे विचारों में है, मानवता में नहीं।'
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