लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट

एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560
आईएसबीएन :9781613015568

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

429 पाठक हैं

'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


सभा में सन्नाटा देखकर विलियम भयभीत हो गया। घबराहट से उसका पसीना छूटने लगा। उसे यों अनुभव हुआ जैसे ये लोग उस रात वाली घटना पर उसको धिक्कार रहे हों और सब उसकी ओर देखने में भी अपमान समझते हों। विलियम ने आँख उठाकर भीड़ की ओर देखा। विनोद झट से रजनिया का हाथ थामकर भीड़ की ओट में हो गया।

आखिर विलियम ने साहस से काम लिया और कुर्सी का सहारा लेकर अफसरों के सामने कुछ झुका और माइक्रोफोन के सामने आया। एक साथ हज़ारों मुख ऊपर उठे और उनकी दृष्टि को सहन न करके अपने अफसरों को सम्बोधित करने के लिए मुख फेर लिया।

ज्योंही उसने भाषण आरम्भ किया, चारों ओर एक शोर उठा और लोग हू-हू करके उसका उपहास उड़ाने लगे। कुछ व्यक्तियों ने उसके द्वारा दिए गए कपड़े और दूसरी चीज़ें उछालकर स्टेज पर फेंकना आरम्भ किया। सीटियों और अन्य बेढंगी ध्वनियों से पाण्डाल गूँज उठा।

विलियम अपने प्रति जनता का यह व्यवहार देखकर आश्चर्यचकित हो गया। वह घबराहट से पागल हुआ जा रहा था। वह जानता था कि इस हुल्लड़ के पीछे विनोद का हाथ था जिसने उस रात रजनिया को उसके यहाँ भेजकर यह नाटक खेला था और ऐसा वातावरण उत्पन्न कर दिया था कि उन को उस से घृणा हो जाए। उसने साहस बटोरा और लोगों को चुप रहने का संकेत किया, परन्तु शोर प्रतिक्षण बढ़ता गया। कम्पनी के अफसरों ने भी ऊँचे स्वर में उन्हें चुप रहने को कहा, परन्तु उनका प्रयास भी असफल रहा।

उसी समय विनोद भीड़ को चीरता हुआ बाहर आया। रजनिया और केथू भी उसके साथ थे। रजनिया को देखकर तो विलियम की सुध जाती रही। वह शायद इन आँखों से बचने के लिए वहां से भाग निकलता, परन्तु इतनी भीड़ देखकर उससे यह भी न हो पाया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय