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एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560
आईएसबीएन :9781613015568

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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


विलियम ने ऊपर आँखें उठाकर देखा-खिड़की और रोशन-दान से कितनी ही आँखें भीतर झाँक रही थीं। वहां के सब रहने वाले जैसे उसपर टूट पड़ना चाहते थे। विलियम ने भयभीत होकर विनोद की ओर देखा तो उसके पाँव-तले की धरती खिसक गई। उसी की पीठ पर कितने ही व्यक्ति हाथों में डण्डे और लोहे के हथियार लिए खड़े थे। यों लगता था कि सब-के-सब विनोद के संकेत पर उसपर टूट पड़ेंगे और उसकी धज्जियाँ उड़ा देंगे। उसके प्राण उनके हाथों में थे। उसका सब नशा हिरन हो गया। कपड़े पसीने में यों तर हो रहे थे मानो वर्षा में भीग कर आया हो।

वह झट से विनोद के पाँव पकड़कर गिड़गिड़ाने और अपनी इज़्ज़त की भिक्षा माँगने लगा। इस स्थिति में इज़्ज़त बचाने का इससे अच्छा और कोई साधन न था। विनोद ने झटककर उसे दूर कर दिया। बाहर खड़े हुए व्यक्ति भीतर चले आए और घृणा से उसकी ओर देखकर उसकी इस दशा पर खिलखिलाकर हँसने लगे। उनकी हँसी में एक भयानक उपहास था।

कुछ व्यक्तियों ने घृणा से उसपर थूका और फिर उसे उसी दशा में छोड़ वे बाहर निकल आए। विलियम अकेला रह गया और धीरे-धीरे फर्श से उठ खड़ा हुआ।

वह अपनी इस कार्यवाही पर बड़ा लज्जित हुआ। वह समझ गया कि अवश्य यह विनोद ही की चाल थी। उसीकी आज्ञा पर रजनिया उसके घर आई थी और उसे लोगों की दृष्टि में गिराने की यह चाल रची गई थी, वरना इतनी रात गए वह उसके घर क्यों आती?

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