ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट एक नदी दो पाटगुलशन नन्दा
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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।
'क्या?' वह काँपते स्वर में बोली।
'एक प्यार...!' विलियम ने उसे खींचकर सीने के साथ लगाने का व्यर्थ प्रयत्न करते हुए कहा।
वह उसकी बाँह झटकते हुए अलग हो गई और रोशनदान के शीशों की ओर देखने लगी जहाँ से दो मोटी-माटी आँखें अभी तक झाँक रही थीं। ज्योंही विलियम ने फिर नशे में रजनिया को बल-पूर्वक खींचकर छाती से लगाना चाहा, वह शेरनी की भाँति उछली और कसकर उसके गाल पर थप्पड़ जमा दिया। भिखारिन का यह साहस देखकर विलियम चकित रह गया। जो स्त्री एक आने के लिए इतनी दूर उसके साथ अकेली आ सकती है, क्या वह इतना कुछ लेने के पश्चात् उसे केवल आँखें दिखाकर चली जाएगी? वह क्रोध से पागल हो गया। उसका इतना अनादर! उसके हाथ से शराब का भरा हुआ गिलास धरती पर गिर गया और वह एक खूँखार भेड़िये की भांति रजनिया की ओर बढ़ा। उसने अपने पाँव बढ़ाए ही थे कि विलियम ने लपककर फिर उसे दोनों बाँहों में जकड़ लिया। वह घायल चिड़िया के समान चिल्लाई।
उसी समय बाहर शोर हुआ और विलियम चौकन्ना हो गया। उसे ऐसा लगा जैसे कोई उस कमरे की छत पर फिसला हो। उसने झट से अपनी पिस्तौल निकाल ली। उसने रजनिया को छोड़ दिया और दबे-पाँव द्वार की ओर बढ़ा।
ज्योंही उसने चटखनी खोलकर किवाड़ खोला, वह सिर से पाँव तक काँप गया। उसके सीने पर विनोद का पिस्तौल था। उखड़े हुए साँस में विलियम ने पुकारा- 'मिस्टर मुखर्जी?'
'हाँ, मिस्टर मुखर्जी।' विलियम के हाथ से पिस्तौल छूटकर नीचे गिर गया। उसका शरीर थर-थर काँपने लगा और पसीना फूट निकला। रजनिया हाँफती हुई विनोद के पास आ गई और उसके साथ लगकर खड़ी हो गई।
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