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एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560
आईएसबीएन :9781613015568

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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


विलियम ज़ोर से हँसने लगा मानो किसी ने उसे गुदगुदा दिया हो। वह कठिनाई से अपनी हँसी रोकते हुए बोला, 'पगली! तुम दूसरों की झूठी बातों में आ गई? तुम्हारी सौगन्ध, जो तुम्हें छूऊँ भी! आज तो हर्ष का दिन है...चाहे रात में सारा घर लूटकर ले जाओ, यह सब तुम्हारा ही है।'

विलियम ने रजनिया का हाथ पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया। वह हिचकिचाई; किंतु फिर स्वयं ही उसके साथ चलने लगी। विलियम किसी अंग्रेज़ी गाने की धुन गुनगुनाता हुआ नशे में बढ़ने लगा।

सड़क छोड़कर जैसे ही वह सरकंडों के खेत की ओर मुड़ा, रजनिया सहमकर रुक गई; जैसे उसे उसके कुविचारों का भान हो गया हो। उसको रुकते हुए देखकर विलियम मुस्कराते हुए बोला, 'डरो नहीं, चली आओ! सीधा रास्ता है और छोटा भी...सड़क से बहुत दूर रहेगा।'

यह कहकर वह फिर हँसा और उसके मुँह से निकली शराब की दुर्गन्ध वातावरण में फैल गई। रजनिया ने घृणा से नाक सिकोड़ ली और धीरे-धीरे उसके पीछे चलने लगी। विलियम का नशा दुगना हो रहा था। वह झूम-झूमकर अंग्रेज़ी गीत गुनगुना रहा था।

घर के बरामदे में जाकर रजनिया फिर रुक गई। विलियम ने किवाड़ खोलकर घूमकर देखा और गुनगुनाहट बन्द करते हुए बोला, 'आओ...चली आओ! डरो नहीं...!' इसके साथ ही उसने कमरे की बत्ती जला दी।

रजनिया भय को दबाकर भीतर चली आई और फटी-फटी आँखों से चारों ओर देखने लगी। कमरा अँग्रेज़ी ढंग से सजा हुआ था। बड़ी-बड़ी आराम-कुर्सियाँ, सोफा-सेट, अलमारियाँ और एक बड़ा-सा प्यानो...वह आश्चर्य से यह सब देख रही थी कि उसने अपने पीछे किवाड़ पर आहट सुनी। उसने झट घूमकर देखा- विलियम भीतर से कमरे की चटकनी लगा रहा था। रजनिया का कलेजा धड़कने लगा, परन्तु उसने अपने इस भ्रम को स्पष्ट न होने दिया और चुपचाप देखने लगी। आज वह अपना सतीत्व और प्राण, दोनों हथेली पर लेकर आई थी।

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