ई-पुस्तकें >> धर्म रहस्य धर्म रहस्यस्वामी विवेकानन्द
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समस्त जगत् का अखण्डत्व - यही श्रेष्ठतम धर्ममत है मैं अमुक हूँ - व्यक्तिविशेष - यह तो बहुत ही संकीर्ण भाव है, यथार्थ सच्चे 'अहम्' के लिए यह सत्य नहीं है।
जिस प्रकार सार्वजनीन भ्रातृभाव पहले से ही है, उसी प्रकार सार्वभौमिक धर्म भी है। आप लोगों में से जिन्होंने नाना देशों में पर्यटन किया है, किसने प्रत्येक जाति मेँ भाई और बहिन को नहीं देखा? मैने पृथ्वी में सर्वत्र ही उनको पाया है। भ्रातृभाव पूर्व से ही विद्यमान है। केवल कुछ ऐसे लोग हैं, जो इसको न देखकर भ्रातृभाव के नये सम्प्रदायों के लिए चिल्ला-चिल्लाकर उसको विश्रृंखल कर देते हैं। सार्वभौमिक धर्म भी वर्तमान है। पुरोहित और दूसरे लोग, जिन्होंने विभिन्न धर्मों के प्रचार का भार इच्छापूर्वक अपने कन्धों पर लिया है, यदि वे कृपापूर्वक कुछ देर के लिए प्रचार-कार्य बन्द कर दें तब हमको ज्ञात हो जायगा कि सार्वभौमिक धर्म पहले से ही वर्तमान है। वे बराबर ही उसके प्रकाश में बाधा डालते आ रहे हैं - कारण उसमें उनका स्वार्थ है।
आप देख रहे हैं कि सब देशों के पुरोहित ही कट्टरपन्थी हैं। इसका कारण क्या है? बहुत कम पुरोहित ऐसे हैं, जो नेता बनकर जनसाधारण को मार्ग दिखाते है; उनमें से अधिकांश ही जनसाधारण के इशारों पर नाचते हैं और वे जनता के नौकर या गुलाम होते हैं। यदि कोई कहे कि यह शुष्क है, तो वे भी बोलेंगे, 'हाँ शुष्क है'। यदि कोई कहे कि यह काला है, तो वे भी कहेंगे, 'हॉ काला है' यदि जनसाधारण उन्नत हों, तो पुरोहित भी उन्नति होने को बाध्य हैं। वे पिछड़ नहीं सकते। इसलिए पुरोहितों को गाली देने के पहले (पुरोहितों को गाली देना भी आजकल प्रथा हो गयी है) हमें अपने को ही गाली देना उचित है। आप अपने योग्य ही व्यवहार पा रहे हैं। यदि कोई पुरोहित नये नये भावों से आपको उन्नति के पथ पर अग्रसर करना चाहे, तो उसकी दशा क्या होगी? उसके बाल-बच्चों को शायद भूखों मरना होगा और उनको फटे वस्त्र पहनकर रहना होगा। आप जिन सांसारिक नियमों को मानकर चलते हैं, वे भी उन्हें ही मानकर चलते हैं। वे कहते हैं - यदि आप अग्रसर हों, तो हम भी होंगे। अवश्य ऐसे भी दो-चार उन्नत और असाधारण लोग हैं जो लोकमत की परवाह नहीं करते। वे सत्य की ओर दृष्टि रखते हुए एकमात्र सत्य को ही अपना लेते हैं। सत्य उनके पास है - मानो उसने उन पर अधिकार कर लिया है और उनको अग्रसर हुए बिना दूसरा उपाय नहीं है। वे कभी पीछे नहीं देखते, फल यह होता है कि उनको लोग नहीं मिलते। भगवान ही केवल उनके सहायक हैं, वे ही उनके पथ-प्रदर्शक ज्योति है - और वे इस ज्योति का ही अनुसरण करते जा रहे हैं।
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