ई-पुस्तकें >> धर्म रहस्य धर्म रहस्यस्वामी विवेकानन्द
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समस्त जगत् का अखण्डत्व - यही श्रेष्ठतम धर्ममत है मैं अमुक हूँ - व्यक्तिविशेष - यह तो बहुत ही संकीर्ण भाव है, यथार्थ सच्चे 'अहम्' के लिए यह सत्य नहीं है।
हम सभी लोग सार्वजनीन भ्रातृभाव की, विश्वबन्धुत्व की बात सुनते हैं और विभिन्न संप्रदाय के लोगों में उनके प्रचार के लिए कितना उत्साह है, यह भी देखते हैं। मुझे एक पुराना किस्सा याद आता है। भारतवर्ष में शराबखोरी बहुत ही नीच समझी जाती है। दो भाई थे, उन दोनों ने रात्रि के समय छिपकर शराब पीने का इरादा किया। बगल के कमरे में उनके चाचा सोये थे, जो बहुत निष्ठावान व्यक्ति थे। इसलिए शराब पीने के पहले वे लोग सलाह करने लगे, - 'हम लोगों को खूब चुपचाप पीना होगा, नहीं तो चाचा जाग जायँगे।' वे लोग शराब पीने के पहले बार बार ''चुप, चुप, जाग जायगा' की आवाज करके एक दूसरे को चुप कराने लगे। इस गड़बड़ में चाचा की नींद खुल गयी। उन्होंने कमरे में घुसकर कुछ देख लिया। हम लोग भी ठीक इन मतवालों की तरह सार्वजनीन भ्रातृभाव का शोर करते हैं। ''हम सभी लोग समान हैं, इसलिए हम लोग एक दल का संगठन करें।'' किन्तु ध्यान रहे, ज्योंही आप लोगों ने किसी दल का संगठन किया, त्योंही आप समता के विरुद्ध हो गये, और उसी समय समता नामक कोई चीज आपके पास नहीं रह जायगी। मुसलमान सार्वजनीन भ्रातृभाव का शोर मचाते हैं। किन्तु वास्तविक वे भ्रातृभाव से कितने दूर हैं! जो मुसलमान नहीं है, वे भ्रातृसंघ में शामिल नहीं किये जायेंगे। उनके गले काटे जाने ही की अधिक सम्भावना है। ईसाई भी सार्वजनीन भ्रातृभाव की बातें करते हैं, किन्तु जो ईसाई नहीं है, उसके लिए अनन्त नरक का द्वार खुला है।
इस प्रकार हम लोग सार्वजनीन भ्रातृभाव और समता के अनुसन्धान में सारी पृथ्वी पर घूमते फिरते हैं। जिस समय आप लोग कहीं पर इस भाव की बातें सुनें, उसी समय मेरा अनुरोध है, आप थोड़ा धैर्य रखें और सतर्क हो जायँ, कारण इन सब बातों के भीतर प्राय: घोर स्वार्थपरता छिपी रहती है। कहावत प्रसिद्ध है, 'जो गरजता है, सो बरसता नहीं।' इसी प्रकार जो लोग यथार्थ कर्मी हैं और अपने हृदय में विश्वबन्धुत्व का अनुभव करते हैं, वे लम्बी-चौड़ी बातें नहीं करते, न उस निमित्त सम्प्रदायों की रचना करते हैं; किन्तु उनके क्रिया-कलाप, गतिविधि और सारे जीवन के ऊपर ध्यान देने से यह स्पष्ट समझ में आ जायगा कि उनके हृदय सचमुच ही मानव-जाति के प्रति बन्धुता से परिपूर्ण हैं, वे सब से प्रेम करते हैं और सब के दुखों से दुःखी होते हैं; वे केवल बातें न बनाकर काम कर दिखाते हैं - आदर्श के अनुसार जीवन व्यतीत करते हैं। सारी दुनिया में लम्बी-चौड़ी बातों की मात्रा इतनी अधिक है कि सारी पृथ्वी उसके नीचे दब जायगी। हम चाहते हैं कि बातें बनाना कम होकर यथार्थ काम कुछ अधिक हो।
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