ई-पुस्तकें >> भक्तियोग भक्तियोगस्वामी विवेकानन्द
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स्वामीजी के भक्तियोग पर व्याख्यान
भक्ति के साधन
भक्ति-लाभ के उपायों तथा साधनों के सम्बन्ध में भगवान रामानुज वेदान्त-सूत्रों की टीका करते हुए कहते हैं, ''भक्ति की प्राप्ति विवेक, विमोक (दमन), अभ्यास, क्रिया (यज्ञादि), कल्याण (पवित्रता), अनवसाद (बल) और अनुद्धर्ष (उल्लास के विरोध) से होती है।'' उनके मतानुसार 'विवेक' का अर्थ यह है कि अन्य बातों के साथ ही हमें खाद्याखाद्य का भी विचार रखना चाहिए। उनके मत से, खाद्य वस्तु के अशुद्ध होने के तीन कारण होते हैं -
(1) जातिदोष अर्थात् खाद्य वस्तु का प्रकृतिगत दोष, जैसे लहसुन, प्याज आदि;
(2) आश्रयदोष अर्थात् दुष्ट और पापी व्यक्तियों के पास से आने में दोष; और
(3) निमित्तदोष अर्थात् किसी अपवित्र वस्तु, जैसे धूल, केश आदि के संस्पर्श से होनेवाला दोष।
श्रुति कहती है, ''आहार शुद्ध होने से चित्त शुद्ध होता है और चित्त शुद्ध होने से भगवान का निरन्तर स्मरण होता है।'' यह वाक्य रामानुज ने छान्दोग्य उपनिषद् से उद्धृत किया है।
आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धि: सत्यशुद्धौ ध्रुवा स्मृति:। - छान्दोग्यउपनिषद् 7/26
भक्तों के लिए खाद्याखाद्य का यह प्रश्न सदा ही बड़ा महत्वपूर्ण रहा है। यद्यपि अनेक भक्त-सम्प्रदाय के लोगों ने इस विषय में काफी तिल का ताड़ भी किया है, पर तो भी इसमें एक बहुत बड़ा सत्य है। हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि सांख्यदर्शन के अनुसार सत्व, रज और तम - जिनकी साम्यावस्था प्रकृति है और जिनकी वैषम्यावस्था से यह जगत् उत्पन्न होता है - प्रकृति के गुण और उपादान दोनों हैं। अतएव इन्हीं उपादानों से समस्त मानव-देह बनी है। इनमें से सत्त्व पदार्थ की प्रधानता ही आध्यात्मिक उन्नति के लिए सब से आवश्यक है। हम भोजन के द्वारा अपने शरीर में जिन उपादानों को लेते हैं, वे हमारी मानसिक गठन पर विशेष प्रभाव डालते हैं। इसलिए हमें खाद्याखाद्य के विषय में विशेष सावधान रहना चाहिए। यह कह देना आवश्यक है कि अन्य विषयों के सदृश इस सम्बन्ध में भी जो कट्टरता शिष्यों द्वारा उपस्थित कर दी जाती है, उसका उत्तरदायित्व आचार्यों पर नहीं है।
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