ई-पुस्तकें >> भक्तियोग भक्तियोगस्वामी विवेकानन्द
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स्वामीजी के भक्तियोग पर व्याख्यान
यह स्पष्ट अनुभव किया जा सकता है कि गुरु से शिष्य में सचमुच एक शक्ति आ रही है। अत: गुरु का शुद्धचित्त होना आवश्यक है।
गुरु के लिए तीसरी आवश्यक बात है - उद्देश्य। गुरु को धन, नाम या यश सम्बन्धी स्वार्थ-सिद्धि के हेतु धर्म शिक्षा नहीं देनी चाहिए। उनके कार्य तो सारी मानवजाति के प्रति। विशुद्ध प्रेम से ही प्रेरित हों। आध्यात्मिक शक्ति का संचार केवल शुद्ध प्रेम के माध्यम से ही हो सकता है। किसी प्रकार का स्वार्थपूर्ण भाव, जैसे कि लाभ अथवा यश की इच्छा तुरन्त ही इस प्रेमरूपी माध्यम को नष्ट कर देगा। भगवान प्रेमस्वरूप हैं, और जिन्होंने इस तत्त्व की उपलब्धि कर ली है, वे ही मनुष्य को शुद्ध होने और ईश्वर को जानने की शिक्षा दे सकते हैं।
जब देखो कि तुम्हारे गुरु में ये सब लक्षण विद्यमान हैं तो फिर तुम्हें कोई आशंका नहीं। अन्यथा उनसे शिक्षा ग्रहण करना ठीक नहीं; क्योंकि तब साधु-भाव संचरित होने के बदले असाधुभाव के संचरित हो जाने का बड़ा भय रहता है। अत: इस प्रकार के खतरे से हमें सब प्रकार से बचना चाहिए। केवल वही ''जो शास्त्रज्ञ, निष्पाप, कामगन्धहीन और श्रेष्ठ ब्रह्मवित् है,'' सच्चा गुरु है।
श्रोत्रियोऽवृजिनोऽकामहतो यो ब्रह्मवित्तम:। - विवेकचूड़ामणि, 34
जो कुछ कहा गया, उससे यह सहज ही मालूम हो जायगा कि धर्म में अनुराग लाने के लिए, धर्म की बातें समझने के लिए और उन्हें अपने जीवन में उतारने के लिए उपयोगी शिक्षा हम यहाँ-वहाँ, किसी भी ऐरे- गैरे के पास नहीं प्राप्त कर सकते। ''पर्वत उपदेश देते हैं, कलकल बहनेवाले झरने विद्या बिखेरते जाते हैं और सर्वत्र शुभ ही शुभ है''। - ये सब बातें कवित्व की दृष्टि से भले ही बड़ी सुन्दर हों; पर जब तक स्वयं मनुष्य में सत्य का बीज अपरिस्फुट भाव में भी नहीं है, तब तक दुनिया की कोई भी चीज उसे सत्य का एक कण तक नहीं दे सकती। पर्वत और झरने किसे उपदेश देते हैं? - उसी मानवात्मा को, जिसके पवित्र हृदय-मन्दिर का कमल खिल चुका है। और उसे इस प्रकार सुन्दर रूप से विकसित करनेवाला ज्ञान- प्रकाश सद्गुरु से ही आता है। जब हृदय-कमल इस प्रकार खिल जाता है, तब वह पर्वत, झरने, नक्षत्र, सूर्य, चन्द्र अथवा इस ब्रह्ममय विश्व में जो कुछ है, सभी से शिक्षा ग्रहण कर सकता है। परन्तु जिसका हृदयकमल अभी तक खिला नहीं, वह तो इन सब में पर्वत आदि के सिवा और कुछ न देख पायगा। एक अन्धा यदि अजायबघर में जाय, तो उससे क्या होगा? पहले उसे आँखें दो, तब कहीं वह समझ सकेगा कि वहाँ की भिन्न भिन्न वस्तुओं से क्या शिक्षा मिल सकती है।
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