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भज गोविन्दम्

आदि शंकराचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :37
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9557
आईएसबीएन :9781613012574

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ब्रह्म साधना के साधकों के लिए प्रवेशिका


अर्थमनर्थम् भावय नित्यं,
नास्ति ततः सुखलेशः सत्यम्।
पुत्रादपि धनभाजां भीतिः,
सर्वत्रैषा विहिता रीतिः ॥2९॥

(भज गोविन्दं भज गोविन्दं,...)

सर्वदा इसका ध्यान रखो कि धन विपत्ति का मूल है। सत्य यही है कि उससे कभी कोई सुख मिलने वाला नहीं है। धनी व्यक्ति को अपने पुत्र से भी खतरा है। धन की यही रीति सब जगह है ॥2९॥
(गोविन्द को भजो, गोविन्द को भजो,.....)

arthamanartham bhaavaya nityam
naastitatah sukhaleshah satyam
putraadapi dhana bhaajaam bhiitih
sarvatraishhaa vihiaa riitih ॥29॥

Keep on thinking that money is cause of all troubles, it cannot give even a bit of happiness. A rich man fears even his own son . This is the law of riches everywhere. ॥29॥
(Chant Govinda, Worship Govinda…..)

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