ई-पुस्तकें >> भज गोविन्दम् भज गोविन्दम्आदि शंकराचार्य
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ब्रह्म साधना के साधकों के लिए प्रवेशिका
मूढ़ जहीहि धनागम तृष्णां
कुरु सद्बुद्धिं मनसि वितृष्णाम्।
यल्लभसे निजकर्मोपात्तं,
वित्तं तेन विनोदय चित्तं ॥2॥
(भज गोविन्दं भज गोविन्दं,...)
हे मोहित बुद्धि! धन प्राप्ति की तृष्णा छोड़ो। अपने मन में वासनाओं से रहित अच्छे विचार उत्पन्न करो। सत्कर्मों से उपार्जित धन के द्वारा ही अपने चित्त को प्रसन्न रखो अर्थात परम सन्तोष धारण करो। 2 ।
(गोविन्द को भजो, गोविन्द को भजो,.....)
mudha jahiihi dhanaagamatrishhnaam
kuru sadbuddhim manasi vitrishhnaam
yallabhase nijakarmopaattam
vittam tena vinodaya chittam ॥2॥
O deluded minded ! Give up your lust to amass wealth. Give up such desires from your mind and take up the path of righteousness. Keep your mind happy with the money which comes as the result of your hard work. ॥2॥
(Chant Govinda, Worship Govinda…..)
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