ई-पुस्तकें >> भज गोविन्दम् भज गोविन्दम्आदि शंकराचार्य
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ब्रह्म साधना के साधकों के लिए प्रवेशिका
अग्रे वह्निः पृष्ठे भानुः,
रात्रौ चुबुकसमर्पितजानुः।
करतलभिक्षस्तरुतलवासः,
तदपि न मुञ्चत्याशापाशः ॥16॥
(भज गोविन्दं भज गोविन्दं,...)
सामने आग, पीछे सूर्य, रात बीतने पर वह अपनी ठुड्डी को घुटनों से सटाकर बैठता है, वह अपने हाथों में भिक्षा प्राप्त करता है और किसी वृक्ष के नीचे रहता है फिर भी आशा का फन्दा उसे नहीं छोड़ता॥16॥
(गोविन्द को भजो, गोविन्द को भजो,.....)
agre vahnih prishhthebhaanuh
raatrau chubukasamarpitajaanuh
karatalabhikshastarutalavaasah
tadapi na mujncatyaashaapaashah ॥16॥
One who warms his body by fire after sunset, curls his body to his knees to avoid cold; eats the begged food and sleeps beneath the tree, he is also bound by desires, even in these difficult situations . ॥16॥
(Chant Govinda, Worship Govinda…..)
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