ई-पुस्तकें >> भज गोविन्दम् भज गोविन्दम्आदि शंकराचार्य
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ब्रह्म साधना के साधकों के लिए प्रवेशिका
अङ्गं गलितं पलितं मुण्डं,
दशनविहीनं जातं तुण्डम्।
वृद्धो याति गृहीत्वा दण्डं,
तदपि न मुञ्चत्याशापिण्डम् ॥15॥
(भज गोविन्दं भज गोविन्दं,...)
शरीर अब गल गया है। सिर के बाल पक गये हैं। मुँह के दाँत सब गिर गये हैं। बूढ़ा अब लाठी के सहारे ही चल सकता है। फिर भी वह आशाओं की गठरी नहीं छोड़ता ॥15॥
(गोविन्द को भजो, गोविन्द को भजो,.....)
angam galitam palitam mundam
dashanavihiinam jatam tundam
vriddho yaati grihiitvaa dandam
tadapi na mujncatyaashaapindam ॥15॥
Even an old man of weak limbs, hairless head, toothless mouth, who walks with a stick, cannot leave his desires. ॥15॥
(Chant Govinda, Worship Govinda…..)
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