ई-पुस्तकें >> भज गोविन्दम् भज गोविन्दम्आदि शंकराचार्य
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ब्रह्म साधना के साधकों के लिए प्रवेशिका
जटिलो मुण्डी लुञ्छितकेशः,
काषायाम्बरबहुकृतवेषः।
पश्यन्नपि च न पश्यति मूढो,
उदरनिमित्तं बहुकृतवेषः ॥14॥
(भज गोविन्दं भज गोविन्दं,...)
ये संन्यासी – किसी ने जटा बढ़ा रखी है, किसी ने सिर मुड़वा लिया है, किसी ने एक-एक करके बाल नोचवा लिए हैं, किसी ने गेरुवा वस्त्र धारण कर लिया है, सभी मूर्ख हैं जो देखकर भी नहीं देख पाते। वास्तव में इन्होंने भिन्न-भिन्न प्रकार के वेष केवल उदर-पोषण के लिए हा बना रखे हैं॥14॥
(गोविन्द को भजो, गोविन्द को भजो,.....)
Jatilo mundii lujnchhitakeshah
kaashhaayaambarabahukritaveshhah
pashyannapi cana pashyati muudhah
udaranimittam bahukritaveshhah ॥14॥
Matted and untidy hair, shaven heads, orange or variously colored cloths are all a way to earn livelihood . O deluded man why don't you understand it even after seeing.॥14॥
(Chant Govinda, Worship Govinda…..)
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