ई-पुस्तकें >> भज गोविन्दम् भज गोविन्दम्आदि शंकराचार्य
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ब्रह्म साधना के साधकों के लिए प्रवेशिका
का ते कान्ता धन गतचिन्ता,
वातुल किं तव नास्ति नियन्ता।
त्रिजगति सज्जनसंगतिरेका,
भवति भवार्णवतरणे नौका ॥13॥
(भज गोविन्दं भज गोविन्दं,...)
तुम्हें पत्नी और धन की इतनी चिंता क्यों है? वह जो सबका नियामक है, तुम्हारे लिये नहीं है क्या? सारे त्रिभुवन में जन्म-मृत्यु रूप सभी परिवर्तनों के समुद्र को पार करने की एक मात्र नौका सत्संग है ॥13॥
(गोविन्द को भजो, गोविन्द को भजो,.....)
kaate kaantaa dhana gatachintaa
vaatula kim tava naasti niyantaa
trijagati sajjanasam gatiraikaa
bhavati bhavaarnavatarane naukaa ॥13॥
Oh deluded man ! Why do you worry about your wealth and wife? Is there no one to take care of them? Only the company of saints can act as a boat in three worlds to take you out from this ocean of rebirths. ॥13॥
(Chant Govinda, Worship Govinda…..)
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