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धर्म एवं दर्शन >> भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

श्रीरामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :77
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9556
आईएसबीएन :9781613012864

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साधकगण इस प्रश्न का उत्तर हमेशा खोजते रहते हैं


यदि व्यक्ति के मन का कोई सर्वश्रेष्ठ प्रतीक देखना हो तो वह मारीच के चरित्र में, मारीच के व्यक्तित्व में हम देख सकते हैं। मारीच का बहुरूपियापन, उसकी चंचलता, उसका स्वर्णिम रंग, ये सबके सब मन के बदलते हुए रूप और रंग हैं। मन वेश बदलने की कला में बड़ा निपुण है और मारीच जो नहीं करना चाहता है, उसे भी करने के लिए रावण मारीच को बाध्य करता है। गोस्वामीजी दोनों भाषाओं का प्रयोग करते हैं। वे 'विनय-पत्रिका' में उन पात्रों को एक भिन्न रूप में प्रस्तुत करते हैं और कहते हैं कि-
मोह दसमौलि।

रावण मूर्तिमान् मोह की वृत्ति है। हमारे मन में कभी-कभी विद्रोह उत्पन्न होता है बुराई के प्रति, पर हमारे पूर्व-पूर्व जन्मों के मोह के जो संस्कार हैं, वे हमें प्रेरित करते हैं कि तुम कैसे नहीं करोगे? जब मारीच ने रावण को समझाने की चेष्टा की तो रावण ने तुरन्त यह कह दिया कि-
गुरु जिमि मूढ़ करसि मम बोधा।
कहु जग मोहि समान को जोधा।। 3/25/2

परिणाम क्या हुआ? मारीच में आपको एक ऐसा पात्रत्व मिलेगा जिसमें गोस्वामीजी ने उसको एक बार प्रेमपूर्ण लिखा और एक बार उसी को खल लिख दिया। एक बार लिखा-
अंतर प्रेम तासु पहिचाना। 3/26/17

मारीच बहुत बड़ा प्रेमी है, उसके अन्तःकरण में महान् प्रेम है और थोड़ी देर बाद ही तुलसीदासजी ने लिख दिया-
खल बधि तुरत फिरे रघुबीरा। 3/27/1

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