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धर्म एवं दर्शन >> भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

श्रीरामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :77
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9556
आईएसबीएन :9781613012864

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साधकगण इस प्रश्न का उत्तर हमेशा खोजते रहते हैं


'रामायण' की यह विशेषता नहीं है कि इसमें केवल ऊँचे से ऊँचे पात्र ही आपको मिलेंगे, आदर्श पात्र तो आपको मिलेंगे ही, श्रीभरत, श्रीलक्ष्मण, श्रीहनुमानजी, श्रीशत्रुघ्नजी, कौसल्याजी और सुमित्राजी जैसे श्रेष्ठतम चरित्र तो आपको मिलेंगे ही, परन्तु उनके साथ-साथ 'रामायण' की विशेषता यह है कि उसमें आपको जीवन का द्वितीय पक्ष भी दिखलायी देगा।

जैसे सांकेतिक भाषा में आप देखें कि 'रामायण' में दो माताएँ ऐसी हें कि जिनकी बार-बार प्रशंसा की गयी है और वे हैं- कौसल्याजी और सुमित्राजी, लेकिन एक पात्र की ऐसी सृष्टि की गयी है कि जिनका नाम है कैकेयी, जिनके सन्दर्भ में दोनों प्रकार की पंक्तियाँ आपको 'रामायण' में मिलेंगी।

कुछ पात्र आपको 'रामायण' में ऐसे मिलेंगे कि उनके बारे में यह निर्णय करना कठिन है कि वे पात्र निन्दनीय हैं कि वन्दनीय हैं। उन पात्रों में लंका के पात्र भी हैं और भगवान् राम के समीप में रहने वाले पात्र भी हैं। कैकेयी तो लंका की पात्र नहीं है, कैकेयी तो अयोध्या की पात्र है, उनके चरित्र में अनेक उकृष्टताएँ दिखायी देती हैं। अनेक सद्गुण और श्रेष्ठता कैकेयीजी के जीवन में दिखायी देती हैं, लेकिन इसके साथ-साथ जीवन की दूसरी विडम्बना क्या है? महाराज कैकय के जीवन का असद् पक्ष जब कैकेयी के जीवन में आता है तब कैकेयी निन्दनीय हो जाती है। अक्सर यह प्रश्न उठाया जाता है कि कैकेयीजी निन्दनीया हैं कि वन्दनीया हैं? कैकेयीजी के सन्दर्भ में मूल सूत्र यही था कि श्रीराम कहते हैं कि कैकेयी वन्दनीया हैं-
दोसु देहिं जननिहि जड़ तेई। 2/262/8

और श्रीभरत यह कहते हैं कि कैकेयी निन्दनीया हैं-
जननी कुमति जगतु सबु साखी। 2/261/1
एहि पापिनिहि बूझि का परेऊ। 2/46/2

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