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धर्म एवं दर्शन >> भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

श्रीरामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :77
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9556
आईएसबीएन :9781613012864

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साधकगण इस प्रश्न का उत्तर हमेशा खोजते रहते हैं


प्रस्तुत तथ्य के कई महत्त्वपूर्ण कारण हैं और उनमें से पहला कारण वही है जिसके सन्दर्भ में मैंने अभी जो बात कही कि जब हम यह कहते हैं कि श्रीराम इतिहास में हुए, तब ऐसा लगता है कि श्रीराम पहले हुए थे, लेकिन अब नहीं हैं, परन्तु जब उसके साथ हम तुलसीदासजी की यह बात जोड़ देते हैं कि श्रीराम साक्षात् ईश्वर हैं, तब फिर उनके साथ 'थे' शब्द का प्रयोग कर पाना सम्भव नहीं होगा। क्योंकि ईश्वर तो सर्वदा होता है। ईश्वर के लिए भूतकालीन क्रिया का प्रयोग नहीं किया जाता। इसका अभिप्राय यह हुआ कि श्रीराम को यदि केवल एक ऐतिहासिक व्यक्ति के रूप में स्वीकार करें तो फिर वे किसी विशेष काल में हुए थे, आज वे नहीं हैं, पर गोस्वामीजी उनके ईश्वरत्व पर अत्यधिक बल देते हैं।

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