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भगवान श्रीकृष्ण की वाणी

स्वामी ब्रह्मस्थानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 9555
आईएसबीएन :9781613012901

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भगवान श्रीकृष्ण के वचन

भगवान् श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में

स्वामी विवेकानन्द के उद्गार


भगवान कृष्ण विभिन्न रूपों में पूजे जाते हैं तथा वे पुरुषों के साथ ही स्त्रियों के तथा बालकों के साथ ही बड़े लोगों के भी इष्टदेव हैं...। वे एक साथ अत्यन्त विलक्षण संन्यासी और अत्यन्त विलक्षण गृहस्थ थे। उनमें रजोगुण अत्यन्त विलक्षण मात्रा में विद्यमान था और इसके साथ ही वे एक महान् अद्भुत वैराग्य का जीवन व्यतीत कर रहे थे। जब तक तुमने गीता नहीं पढ़ी है, तब तक कृष्ण को कभी नहीं समझा जा सकता, क्योंकि वे स्वयं अपने उपदेशों के विग्रह थे। श्रीकृष्ण की गरिमा यह है कि वे भारत की वसुन्धरा में जन्म लेनेवाले हमारे सनातन धर्म के सर्वोत्कृष्ट उपदेशक तथा वेदान्त के अप्रतिम भाष्यकार रहे हैं। गीता में हम साम्प्रदायिक संघर्ष की दूर से आनेवाली ध्वनि सुनते हैं और भगवान् कृष्ण मध्य में उपस्थित होकर उन सब में समन्वय की स्थापना करते हैं। समन्वय के महान् आचार्य भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं, ''सब मुझमें धागे में गुँथे मोतियों के समान पिरोये हुए हैं।''

 

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