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भगवान श्रीकृष्ण की वाणी

स्वामी ब्रह्मस्थानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 9555
आईएसबीएन :9781613012901

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भगवान श्रीकृष्ण के वचन

ज्ञानयोग


¤ जिन व्यक्तियों का हृदय पवित्र है, वे धन्य हैं, क्योंकि उन्हें ईश्वर का ज्ञान दिया जाएगा। 

¤ जिस प्रकार उगता हुआ सूर्य रात्रि के अन्धकार का विनाश कर देता है, वैसे ही आत्मा का ज्ञान समस्त भ्रमों को दूर हटा देता है।

¤ ज्ञानयोग उन लोगों के लिए है, जो किसी भी वस्तु की कामना नहीं करते, क्योंकि उन्होंने यह जानते हुए समस्त कर्मों का त्याग कर दिया है कि प्रत्येक इच्छा अशुभ से परिपूर्ण होती है।

¤ मानव-जन्म धन्य है; स्वर्ग के निवासी भी इस जन्म की कामना करते हैं; क्योंकि मनुष्य के द्वारा ही वास्तविक ज्ञान और विशुद्ध प्रेम की प्राप्ति की जा सकती है।

¤ पृथ्वी या स्वर्ग में जीवन-लाभ की चेष्टा न कर। जीवन के प्रति तृष्णा माया है। जीवन को क्षणस्थायी जानते हुए अज्ञान के इस स्वप्न से जाग उठ, मृत्यु का ग्रास बनने से पूर्व ज्ञान और मुक्ति पाने का प्रयास कर।

¤ हे परंतप! सांसारिक वस्तुओं से सिद्ध होनेवाले यज्ञ से ज्ञान-यज्ञ सब प्रकार से श्रेष्ठ है; क्योंकि हे पार्थ! सम्पूर्ण कर्म पूरी तरह ज्ञान में ही परिसमाप्त होते हैं।

¤ उस ज्ञान को सम्यक् प्रणिपात, निष्कपट भाव से प्रश्न तथा सेवा के द्वारा प्राप्त कर। वे तत्त्वदर्शी ज्ञानी जन तुझे उस ज्ञान का उपदेश करेंगे।

¤ उस ज्ञान को जानकर तू फिर इस प्रकार मोह को प्राप्त नहीं होगा, और हे पाण्डव! उस ज्ञान के द्वारा तू सम्पूर्ण भूतों को अपने भीतर देखेगा और फिर उन्हें मुझमें पाएगा।

¤ यदि तू सभी पापियों से भी अधिक पाप करनेवाला है, तो भी तू ज्ञान की नौका के द्वारा समस्त पापों से तर जाएगा।

¤ हे अर्जुन! जैसे प्रज्वलित अग्नि ईंधन को भस्मसात् कर देती है, वैसे ही ज्ञान की अग्नि समस्त कर्मों को भस्मसात् कर देती है।

¤ निःसंदेह इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र करनेवाला कुछ भी नहीं है। योग के द्वारा शुद्धान्तःकरण हुआ पुरुष उस ज्ञान को कालक्रम में स्वयं अपनी आत्मा मे अनुभव करता है।

¤ श्रद्धावान् और जितेन्द्रिय पुरुष ज्ञान की प्राप्ति करता है तथा ज्ञान प्राप्त करके वह तत्क्षण परम शान्ति की उपलब्धि करता है।

¤ किन्तु अज्ञानी, श्रद्धारहित और संशययुक्त पुरुष विनष्ट हो जाता है। संशययुक्त पुरुष के लिए न तो यह संसार है, न परलोक और न सुख ही।

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