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भगवान श्रीकृष्ण की वाणी

स्वामी ब्रह्मस्थानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 9555
आईएसबीएन :9781613012901

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भगवान श्रीकृष्ण के वचन

कुछ वर्षों के बाद कृष्ण ने एक नये युगकार्य के आह्वान का अनुभव किया और वे गुजरात के समुद्रतटीय नगर द्वारका में चले आये। उन्होंने अपने नवगठित राज्य का शासन अपने सम्बन्धी वृष्णियों को सौप दिया। यद्यपि वे स्वयं एक महान् योद्धा, बुद्धिमान् कूटनीतिज्ञ और विवेकवान् राजनीतिज्ञ थे, किन्तु उन्होंने कभी भी सिंहासन ग्रहण नहीं किया। उन्होंने अनेक राज्यों को जीता, पर उन्हें दूसरों को दे दिया। यद्यपि वे प्रायः अत्यन्त कर्मसंकुलता के मध्य देखे जाते थे, तथापि वे सदैव प्रशान्त और अविचलित रहे। यद्यपि वे सदैव कर्मरत रहे, पर वे सदा पूर्ण रूप से अनासक्त ही बने रहे।

कुरुक्षेत्र के महान् धर्मयुद्ध के सद्य पूर्व जब अर्जुन ने अपने अग्रजों और आत्मीय-स्वजनों को मरने-मारने के लिए तत्पर देखा, तब वे प्रगाढ़ विषाद से भर गये तथा मोहित होकर विलाप करने लगे। अर्जुन की इस नपुंसकता और मोह को दूर करने के लिए भगवान् श्रीकृष्ण ने युद्धक्षेत्र में अर्जुन को शान्ति और आनन्द के अक्षय स्रोत महान् गीता का उपदेश दिया। गीता में सात सौ श्लोक अठारह अध्यायों में विन्यस्त है।

युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करने के उपरान्त श्रीकृष्ण वापस द्वारका लौटे। वहाँ कुछ समय के बाद वृष्णिवंशियों के बीच गृह-युद्ध छिड़ गया। वे एक-दूसरे पर टूट पड़े और नष्ट हो गये। इन घटनाओं को अनिवार्य विधिविधान मानकर श्रीकृष्ण ने अनासक्त रूप से उनका अवलोकन किया। अपने लीलासंवरण का समय आसन्न जानकर उन्होंने अपने मन और इन्द्रियों को योग में निमज्जित किया तथा वे एक वृक्ष के नीचे धरती पर लेट गये। कुछ दूर से एक व्याध ने भ्रम से उनके पाटलाभ चरणों को झुका हुआ हिरण समझकर उसकी ओर तीर का सन्धान किया, जिसने भगवान् के चरणों को बींध डाला। समीप आने पर व्याध को अपनी भयंकर त्रुटि का भान हुआ और वह शोक से भर उठा, किन्तु भगवान् ने उसे मुस्कराते हुए आशीर्वाद प्रदान किया तथा इसके बाद ही उन्होंने अपनी देह का परित्याग कर दिया।

इस प्रकार समस्त अवतारों में महान श्रीकृष्ण ने पापों के विनाश और धर्म की संस्थापना के अपने महान् एवं दैवी युगकार्य को पूर्ण कर अपने नाशवान् शरीर का परित्याग किया। यद्यपि सहस्रों वर्ष व्यतीत हो चुके हैं, पर भगवान् श्रीकृष्ण की स्मृति आज भी कोटि कोटि भक्तों के हृदयों में चिर-नवीन बनी हुई है। वे समस्त अन्धकार का विनाश करें तथा सब पर अपने शुभ आशीर्वाद का वर्षण करें।


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