ई-पुस्तकें >> भगवान श्रीकृष्ण की वाणी भगवान श्रीकृष्ण की वाणीस्वामी ब्रह्मस्थानन्द
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भगवान श्रीकृष्ण के वचन
¤ अपने मन को समग्र रूप से मुझमें अभिनिविष्ट करते हुए अपनी इन्द्रियों को मुझमें लयमान करते हुए, एक दूसरे को बोध देते हुए तथा निरन्तर मेरी चर्चा करते हुए वे सन्तुष्ट और प्रसन्न होते हैं।
¤ हे अर्जुन! मुझे अनन्य मन से भक्ति के द्वारा ही इसी रूप में जाना और वस्तुत: देखा जा सकता है तथा मुझमें प्रविष्ट हुआ जा सकता है।
¤ हे पाण्डव! जो समस्त कर्मों को मेरा समझकर करता है तथा मुझे परमगति मानता है, जो मेरा भक्त है, आसक्तिरहित है तथा सर्वभूता के प्रति वैरभाव से रहित है, वह मुझे प्राप्त करता है।
¤ बहुत जन्मों के अन्त में ज्ञानी ब्यक्ति यह जानकर कि सब कुछ वासुदेव ही हैं, मेरी शरण में आता है। ऐसा महात्मा अत्यन्त दुर्लभ है।
¤ इसलिए सब समय मेरा स्मरण करते हुए युद्ध कर, अपने मन और बुद्धि को मुझमें निविष्ट करके तू मुझे ही प्राप्त करेगा - इसमें कोई सन्देह नहीं है।
¤ जब व्यक्ति समस्त कर्मों का परित्याग कर मेरी शरण में आता है, तब ही मैं उसके प्रभाव को अतिशय बढ़ा देना पसन्द करता हूँ। अमरता को प्राप्त करके वह मुझसे एकता प्राप्त करने के योग्य हो जाता है।
¤ तेरे समस्त कार्य मेरी सेवा के रूप में सम्पन्न हों। तेरा प्रत्येक शब्द मेरे दैवी गुणों की स्तुति करे। अपने मन को समस्त स्वार्थपूर्ण कामनाओं से रहित कर दे और उसे मुझे समर्पित कर दे।
¤ समस्त भोगों और सुखों का त्याग कर, यज्ञ कर, दान दे, मेरे नाम का जप कर, व्रत निभा और तप कर। इन समस्त कार्यों को मेरे ही निमित्त कर।
¤ इस प्रकार अपने समस्त कर्मों के माध्यम से स्वयं को मेरे प्रति समर्पित करते हुए और निरन्तर मेरा स्मरण करते हुए तू मुझसे प्रेम करने लगेगा। जब तू मुझसे प्रेम करने लगेगा, तब तेरे लिए पाने को कुछ भी शेष नहीं रहेगा।
¤ तू मुझमें अचल मन वाला हो, मेराभक्तबन, मेरी पूजाकर, मुझे प्रणाम कर, तब तू मुझे ही प्राप्त करेगा। तेरे लिए मैं यह सत्य प्रतिज्ञा करता हूं, क्योंकि तू मेरा अत्यन्त प्रिय है।
¤ समस्त कर्तव्यों को त्यागकर केवल मेरी ही शरण को प्राप्त हो। मैं तुझे समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, तू शोक मत कर।
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