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भगवान श्रीकृष्ण की वाणी

स्वामी ब्रह्मस्थानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 9555
आईएसबीएन :9781613012901

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भगवान श्रीकृष्ण के वचन

ध्यानयोग


¤ उद्धव ने पूछा - हे कमलनयन कृष्ण! कृपया बताइये कि मुक्तिकामी व्यक्ति को किस प्रकार और कैसे आप पर ध्यान करना चाहिए।

¤ श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया - शुद्ध भूमि में अपने आसन को न तो अधिक ऊँचा और न अधिक नीचा स्थापित करे। यह आसन कुश-तृणों के ऊपर मृगछाला तथा उसके ऊपर वस्त्र का हो। इस पर बैठकर वह ध्यान करे।

¤ उसे दृढ़तापूर्वक बैठना चाहिए तथा अपनी काया, सिर और ग्रीवा को सीधा और अचल रखते हुए अन्य दिशाओं की ओर न देखते हुए अपनी नासिका के अग्रभाग को देखना चाहिए।

¤ उसे अपनी इन्द्रियों को संयमित करते हुए पूरक, कुम्भक और रेचक के द्वारा तथा क्रमशः इसके विपरीत क्रम का भी अभ्यास करके प्राण के मार्ग को शुद्ध करना चाहिए।

¤ ॐ अक्षर को प्राणायाम के सहारे हृदय तक उठाकर उसके साथ स्वर का योग करना चाहिए। ॐ घण्टे के अनवरत निनाद के समान होता है तथा कमलदण्ड में निहित सूत्र के समान सूक्ष्म धारा में फैला होता है।

¤ इस प्रकार व्यक्ति को दस बार ॐकार सहित प्राणायाम का अभ्यास दिन में तीन बार करना चाहिए। तब एक माह में व्यक्ति प्राण को संयमित कर लेता है।

¤ यदि ध्यान करते समय मन चंचल होकर भटकने लगे, तब व्यक्ति को दृढतापूर्वक इसका नियमन करना चाहिए तथा इसकी उच्छृंखलता को धैर्यपूर्वक नियन्त्रित करने की चेष्टा करनी चाहिए।

¤ मनोनिग्रह को सर्वोच्च योग कहा गया है। यह मन एक उद्दण्ड घोडे को साधने के समान है, जिसे सवार की आज्ञा मानने को बाध्य किया ही जाना चाहिए।

¤ यदि योगी मोहित होकर जीवन में त्रुटियाँ करता है, तो उसे प्रार्थना और ध्यान के द्वारा अपनी अपवित्रता जला देना चाहिए। प्रार्थना और ध्यान का यह योग प्रायश्चित्त का एकमेव मार्ग है।

¤ ब्रह्मचर्य के व्रत में स्थित रह, भयरहित और प्रशान्त हो, सावधानी से मन को वश में कर, मुझे परम आश्रय समझते हुए उसे मुझमें चित्त को लगाकर योगस्थित हो जाना चाहिए।

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