लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> भगवान महावीर की वाणी

भगवान महावीर की वाणी

स्वामी ब्रह्मस्थानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9554
आईएसबीएन :9781613012659

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

161 पाठक हैं

भगवान महावीर के वचन

अणुव्रत

¤ परस्त्री का सहवास, द्यूतक्रीड़ा, मद्य, शिकार, वचन-परुषता, कठोर-दण्ड तथा अर्धदूषण (चोरी आदि) ये सात व्यसन हैं।

¤ मांसाहार से दर्प बढता है। दर्प से मनुष्य में मद्यपान की अभिलाषा जागती है और तब वह जुआ भी खेलता है। इस प्रकार (एक मांसाहार से ही) मनुष्य उक्त वर्णित सर्व दोषों को प्राप्त हो जाता है।

¤ प्राणिवध (हिंसा), मृषावाद (असत्य-वचन), बिना दी हुयी वस्तु का ग्रहण (चोरी), परस्त्री-सेवन (कुशील), तथा अपरिमित कामना (परिग्रह) इन पाँचो पापों से विरति अणुव्रत है।

¤ प्राणिवध से विरत श्रावक को क्रोधादि कषायों से मन को दूषित करके पशु व मनुष्य आदि का बन्धन, डण्डे आदि से ताड़न-पीड़न, नाक आदि का छेदन, शक्ति से अधिक भार लादना तथा खान-पान रोकना आदि कर्म नहीं करने चाहिए। (क्योंकि ये कर्म हिंसा जैसे ही हैं। इनका त्याग स्थूल-हिंसा विरति है।)

¤ स्थूल (मोटे तौर पर) असत्य-विरति दूसरा अणुव्रत है। (हिंसा की तरह) इसके भी पाँच भेद हैं - कन्या अलीक, गो-अलीक व भू-अलीक अर्थात् कन्या, गो (पशु) तथा भूमि के विषय में झूँठ बोलना, किसी की धरोहर दबा लेना और झूँठी गवाही देना। (इनका त्याग स्थूल असत्य-विरति है।)

¤ (साथ ही साथ) सत्य अणुव्रती बिना सोचे- समझे सहसा न तो कोई बात करता है, न किसी का रहस्योद्घाटन करता है, न अपनी पत्नी की कोई गुप्त बात मित्रों आदि में प्रकट करता है, न मिथ्या (अहितकारी) उपदेश करता है और न कूटलेखक्रिया (जाली हस्ताक्षर या जाली दस्तावेज आदि) करता है।

¤ अचौर्याणुव्रती श्रावक को न चोरी का माल खरीदना चाहिए, न चोरी में प्रेरक बनना चाहिए। न ही राज्य-विरुद्ध अर्थात् कर आदि की चोरी व नियम-विरुद्ध कोई कार्य करना चाहिए। वस्तुओं में मिलावट आदि नहीं करना चाहिए। जाली सिक्के या नोट आदि नहीं चलाना चाहिए।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book