लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> भगवान महावीर की वाणी

भगवान महावीर की वाणी

स्वामी ब्रह्मस्थानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9554
आईएसबीएन :9781613012659

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

161 पाठक हैं

भगवान महावीर के वचन

¤ आत्मा ही मेरा ज्ञान है। आत्मा ही दर्शन और चरित्र है। आत्मा ही प्रत्याख्यान है और आत्मा ही संयम और योग है। अर्थात् ये सब आत्मरूप ही हैं।

¤ सम्यग्दृष्टि मनुष्य अपनी इन्द्रियों के द्वारा चेतन तथा अचेतन द्रव्यों का जो भी उपभोग करता है वह सब कर्मों की निर्जरा में सहायक होता है।

¤ जो सत्कार, पूजा और वन्दन तक नहीं चाहता, वह किसी से प्रशंसा की अपेक्षा कैसे करेगा ? (वास्तव में) जो संयत है, सुव्रती है, तपस्वी है और आत्मगवेषी है, वही भिक्षु है।

¤ ज्ञान, दर्शन, चरित्र, तप, शान्ति (क्षमा) एवं मुक्ति (निलोंभता) के द्वारा आगे बढ़ना चाहिये - जीवन को वर्धमान बनाना चाहिये।

¤ जिससे तत्त्व का ज्ञान होता है, चित्त का निरोध होता है तथा आत्मा विशुद्ध होती है, उसी को जिनशासन में ज्ञान कहा गया है।

¤ (अमूढ़दृष्टि या विवेकी) किसी के प्रश्न का उत्तर देते समय न तो शात्र के अर्थ को छिपाए और न अपसिद्धान्त के द्वारा शास्त्र की विराधना करे। न मान करे, न अपने बड़प्पन का प्रदर्शन करे। न किसी विद्वान का परिहास करे और न किसी को आशीर्वाद दे।

¤ तू महासागर को तो पार कर गया है, अब तट के निकट पहुँचकर क्यों खड़ा है। उसे पार करने में शीघ्रता कर। हे गौतम! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर।

¤ (साधक) सुनकर ही कल्याण का मार्ग जान सकता है। सुनकर ही पाप या अहित का मार्ग जान सकता है। अत. सुनकर ही हित और अहित दोनों का मार्ग जानकर जो श्रेयस्कर हो, उसका आचरण करना चाहिए।

¤ (और फिर) ज्ञान के आदेश द्वारा सम्यग्दर्शन- मूलक तप, नियम, संयम में स्थित होकर कर्म-मल से विशुद्ध (संयमी साधक) जीवनपर्यन्त निष्कम्प (स्थिरचित्त) होकर विहार करता है।

¤ जिससे जीव राग-विमुख होता है, श्रेय में अनुरक्त होता है और जिससे मैत्रीभाव प्रभावित होता (बढ़ता) है, उसी को जिनशासन में ज्ञान कहा गया है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai