ई-पुस्तकें >> भगवान बुद्ध की वाणी भगवान बुद्ध की वाणीस्वामी ब्रह्मस्थानन्द
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भगवान बुद्ध के वचन
बुद्ध ने वाराणसी के निकट सारनाथ में पहला उपदेश प्रदान किया। अपने महान् सन्देशों का पूरे पैंतालीस वर्षों तक प्रचार करते हुए तथा एक सुव्यवस्थित संघ की स्थापना के द्वारा उन्होंने अपने अवतरण के उद्देश्य को पूर्ण किया। तदुपरान्त वैशाख-पूर्णिमा को अस्सी वर्ष की प्रौढ़ अवस्था में कुशीनारा में उनका महापरिनिर्वाण हुआ। यह दिन तिगुना पुनीत माना जाता है, क्योंकि इसी दिन वे उत्पन्न हुए थे तथा इसी दिन उन्होंने बोध प्राप्त किया था।
भगवान बुद्ध ने महापरिनिब्बानसुत में कहा है कि -
(1) वह स्थान जहाँ उन्होंने जन्म लिया, अर्थात् लुम्बिनी,
(2) वह स्थान जहाँ उन्होंने स्वयं बोधत्व प्राप्त किया, अर्थात् बुद्धगया,
(3) वह स्थान जहाँ उन्होंने धम्मचक्कपवत्तनसुत्त (प्रथम उपदेश) दिया, अर्थात् सारनाथ या इशिपत्तन और
(4) वह स्थान जहाँ उन्होंने महापरिनिब्बान ग्रहण किया, अर्थात् कुशीनारा, ये ऐसे स्थान हैं, जो धार्मिक प्रेरणा और प्रायश्चित्त की भावना का संचार करते हैं तथा उन लोगों के लिए तीर्थ हैं जो उन पर विश्वास करते हैं।
हम बुद्ध को दस अवतारों में से एक मानते हैं। महात्मा गांधी के अनुसार, ''बुद्ध के उपदेशों का प्रमुख भाग आज हिन्दू धर्म का एक अपरिहार्य अंग बन गया है। गौतम ने हिन्दू धर्म में जो महान सुधार किया है, उससे विरत होना या उसके विपरीत कार्य करना आज हिन्दू भारत के लिए असम्भव है। उन्होंने अपने महान् त्याग, अपने महान् वैराग्य तथा अपनी चरम पवित्रता के द्वारा हिन्दू धर्म पर अमिट छाप छोडी है तथा हिन्दू धर्म इस महान् उपदेष्टा का चिरन्तन ऋणी है। गौतम हिन्दू धर्म के सवोंत्कृष्ट तत्वों से परिपूर्ण थे तथा उन्होंने वेदी में गड़े हुए उन कुछ उपदेशों को पुनर्जीवित किया जो कचरे के साथ लिपटे हुए पड़े थे।''
वे केवल 'एशिया की ज्योति' ही नहीं थे, अपितु सारे 'संसार की ज्योति' थे। मानवता के आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक उन्नयन के लिए उनका अवधान महान् तथा अपरिमेय है। उनके जीवन एवं उपदेशों ने लक्ष-लक्ष लोगों के दैनंदिन जीवन तथा चिन्तन को प्रभावित किया है।
हमारी प्रार्थना है कि प्रेम और करुणा के मूर्तिमान् विग्रह भगवान् बुद्ध अपनी कृपा-वर्षा हम सब पर करें।
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