ई-पुस्तकें >> भगवान बुद्ध की वाणी भगवान बुद्ध की वाणीस्वामी ब्रह्मस्थानन्द
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भगवान बुद्ध के वचन
¤ उसके हृदय में कभी भी उग्र विचार न रहे और उसे समस्त प्राणियों के प्रति परोपकार की प्रवृत्ति का परित्याग कभी भी नहीं करना चाहिए।
¤ जब तक लोग सत्य-वचनों की ओर ध्यान न दें, तब तक उपदेशक को यह जानना चाहिए कि उसे उनके हृदयों में अधिक गहराई तक पहुँचना होगा, परन्तु जब वे उसके शब्दों पर ध्यान देने लगें, तो उसे आशा करनी चाहिए कि शीघ्र ही वे बोध को प्राप्त करेंगे।
¤ हे भद्रवंशीय शिक्षित जनो, तुम लोग जिन्होंने तथागत के वचनों का प्रचार करने का व्रत लिया है, तुम्हारे हाथों में महाभाग सत्य के सद्धर्म को हस्तान्तरित करते, सौंपते और समाविष्ट करते हैं।
¤ सत्य के सद्धर्म को ग्रहण करो, इसे रक्षित करो, इसे पढो, और पुन: पढ़ो, इसकी थाह लो, इसे प्रकाशित करो तथा विश्व के सभी भागों के समस्त प्राणियों में इसका प्रचार करो।
¤ तथागत लोभी नहीं है और न संकीर्ण मन वाला है। वह उन सभी को पूर्ण बुद्ध-ज्ञान प्रदान करने के लिए सहमत है, जो उसे ग्रहण करना चाहते हैं। तुम उसके समान बनो और सत्य को मुक्तहस्त से प्रदान करने, प्रदर्शित करने और अर्पित करने में उसके उदाहरण का अनुकरण करो।
¤ धर्म के कल्याणकारी और प्रशान्तिदायी वचनों को सुनने की इच्छा करनेवाले श्रोताओं, तुम चारों ओर एकत्रित हो जाओ। अविश्वासियों को सत्य को ग्रहण करने के लिए जाग्रत करो और उन्हें हर्ष एवं उल्लास से परिपूर्ण कर दो। उन्हें उत्पेरित करो, उन्हें उपदेश दो और उन्हें तब तक ऊँचे से ऊँचा उठाओ, जब तक वे सत्य को उसके समस्त वैभव और अनन्त गरिमा के साथ आमने-सामने सामने न देख लें।
¤ हजारों निरर्थक शब्दों की अपेक्षा वह एक उपयोगी वाक्य उत्तम है, जिसके सुनने से व्यक्ति शान्ति प्राप्त करता है।
अच्छा व्यक्ति सब कुछ त्याग देता है।
साधु इच्छा से प्रेरित होकर नहीं बोलता।
सुख या दुःख से प्रभावित होकर
विवेकी व्यक्ति न तो हर्ष प्रकट करता है
और न विषाद ही।
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