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भगवान बुद्ध की वाणी

स्वामी ब्रह्मस्थानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :72
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9553
आईएसबीएन :9781613012871

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भगवान बुद्ध के वचन

स्फुट

¤ स्वप्न से जाग और व्यर्थ कालक्षेप मत कर, तू अपना मन सत्य की ओर अनावृत कर। धर्माचरण कर और तू परम निर्वाण को पा लेगा।

¤ जो भी आर्य अष्टांगिक मार्ग पर चलते हैं, उनमें से प्रत्येक धार्मिक जीवन के आनन्द की प्राप्ति कर सकता है। जो धन से लिपटा हुआ है, उसके लिए यही अच्छा है कि अपने हृदय को उससे विषाक्त करने के बदले उसका परित्याग कर दे, किन्तु जो धन से लिपटा हुआ नहीं है और जिसके पास सम्पदा है तथा जो उसका सम्यक् उपयोग करता है, वह अपने सहगामी बन्धुओं के लिए वरदान स्वरूप हो जाएगा।

¤ मैं तुझसे कहता हूँ कि तू जीवन के अपने व्यवसाय में स्थित रह और अपने कर्म को परिश्रमपूर्वक सम्पन्न कर। जीवन, धन और शक्ति पुरुष को नहीं बाँधते बल्कि जीवन, धन और शक्ति के प्रति आसक्ति ही उसे बाँध लेती है।

¤ तथागत के धर्म के लिए व्यक्ति का अनिकेत होना, या संसार से विरत होना तब तक आवश्यक नहीं, जब तक स्वयं वह ऐसा करने की प्रेरणा नहीं पाता, परन्तु तथागत के धर्म के लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति स्व के भ्रम से मुक्त हो जाए, अपने हृदय का परिमार्जन करे, सुख के प्रति अपनी तृष्णा का परित्याग करे और सदाचार का जीवन व्यतीत करे।

¤ हमारे शुभ और अशुभ कर्म छाया के समान हमारा अनुसरण करते हैं।

¤ वे सब, जो विवेकी हैं, शरीर के सुखों की अवहेलना करते हैं। वे काम की उपेक्षा करते हैं तथा अपने आध्यात्मिक अस्तित्व को विकसित करने की चेष्टा करते हैं।

¤ अगर वृक्ष प्रचण्ड ज्वाला से जल रहा हो, तो उसमे पक्षी कैसे बसेरा करेंगे ? जहाँ वासना जीवित है, वहाँ सत्य का निवास नहीं हो सकता।

¤ काम का ज्वर सबके लिए भयानक होता है, वह संसार को बहा ले जाता है। जो इसके भँवर में फँस गया है, उसके लिए कोई बचाव नहीं है। किन्तु विवेक एक छोटी नौका है तथा चिन्तन पतवार है। धर्म का सिंहनाद तुम्हें मार (शत्रु) के प्रहार से मुत्यु होने के लिए पुकार रहा है।

¤ चूंकि अपने कर्मों के फल से बचना असम्भव है, इसलिए हम सत्कर्म करें।

¤ सदाचरण और बुद्धिमत्ता के द्वारा अपनी वास्तविक गुरुता का प्रकाशन करो, सांसारिक वस्तुओं की निस्सारता पर गहन चिन्तन करो और जीवन की अस्थिरता को समझ जाओ।

¤ दूसरों का दोष देखना आसान है, किन्तु अपना (दोष) देखना कठिन है। व्यक्ति अपने पड़ोसी के दोषों को तो भूसे की तरह उड़ाता फिरता है, पर अपने दोषों को वह वैसे ही ढाँकता है, जैसे एक धोखेबाज झूठे पासों को जुआरी से छिपाता है।

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