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भगवान बुद्ध की वाणी

स्वामी ब्रह्मस्थानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :72
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9553
आईएसबीएन :9781613012871

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भगवान बुद्ध के वचन

भिक्षु

¤ इस जीवन में जिसने पाप और पुण्य दोनों का परित्याग कर दिया है, जो पवित्र है, जो इस संसार में विवेकयुक्त होकर रहता है, वही वास्तविक रूप में भिक्षु कहा जाता है।

¤ झूठ बोलनेवाला अनुशासनहीन व्यक्ति सिर मुँडाने से ही तपस्वी नहीं बन जाता। जो कामना और लोभ से भरा हुआ है, वह भला तपस्वी कैसे हो सकता है?

¤ जिसने छोटी-बड़ी दोनों प्रकार की बुराइयों का दमन कर लिया है, उसे ही तपस्वी कहा जाता है, क्योंकि उसने सभी बुराइयों को पराजित किया है।

¤ जो आलसी और अज्ञानी है, वह केवल चुप रहकर साधु नहीं बन जाता। परन्तु जो विद्वान् पुरुष तराजू में तौलने के समान उत्तम को स्वीकार करता और बुराई का परित्याग करता है, वही वस्तुत: साधु है।

¤ इसलिए कोई भी व्यक्ति मात्र इस हेतु भिक्षु नहीं बन जाता कि वह दूसरों से भिक्षा मॉगता है। औपचारिक क्रियाओं को सम्पन्न करनेवाला व्यक्ति वास्तविक रूप से भिक्षु नहीं बनता।

¤ भिक्षु, जब तक तूने तृष्णाओं को समाप्त नहीं किया है, तब तक तू सन्तुष्ट मत हो। पाप-भावना की समाप्ति ही सबसे बड़ा धर्म है।

¤ हे भिक्षु, इसलिए तू अपने प्रकाश को इस प्रकार विकिरित कर कि संसार का परित्याग कर जब तूने अपना सारा जीवन धर्म और धार्मिक अनुशासन में लगाया है, तो तुझे शील के नियमों का अनुगमन करना चाहिए तथा तुझे अपने गुरुओं और बड़ों के प्रति सम्मानपूर्ण, स्नेहपूर्ण और सेवापरायण होना चाहिए।

¤ जो श्रमण स्त्री को स्त्री की दृष्टि से देखता है या उसका स्त्री के रूप में स्पर्श करता है, उसने अपनी प्रतिज्ञा भंग कर दी है और वह शाक्यमुनि (बुद्ध) का शिष्य नहीं रह गया है।

¤ हे भिक्षु, यदि अन्ततोगत्वा तुझे स्त्री के साथ बातचीत करनी ही पड़े तो स्वच्छ हृदय से कर और स्वयं विचार कर, ''मैं एक श्रमण के रूप में इस पापपूर्ण संसार में कमल की उस निष्कलंक पँखुड़ी के समान जीवन-यापन करूंगा, जो उस पंक में लिप्त नहीं होती, जिसमें वह विकसित होती है।''

¤ यदि स्त्री वृद्धा हो, तो उसे अपनी माता समझ, यदि युवा हो, तो अपनी बहिन, और यदि बहुत छोटी हो, तो उसे अपनी पुत्री मान।

¤ पुरुषों में काम की शक्ति अत्यधिक होती है तथा उससे पूरी तरह से भयभीत होना चाहिए। इसलिए निष्ठापूर्ण अध्यवसाय एवं शराग्र के समान तीक्ष्ण विवेक जीवन में लाने का व्रत लो।

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