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भगवान बुद्ध की वाणी

स्वामी ब्रह्मस्थानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :72
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9553
आईएसबीएन :9781613012871

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भगवान बुद्ध के वचन

¤ यदि कोई व्यक्ति पाप करता है, तो उसे पुन: पाप न करने दो, उसे पाप में आनन्द न लेने दो, बुराई का परिणाम पीड़ा होती है।

¤ मनुष्य प्रेम के द्वारा क्रोध को जीते; पुण्य के द्वारा पाप को हराए, औदार्य से लोभी को पराजित करे तथा सच्चाई से झूठे को जीते।

¤ यदि व्यक्ति पाप-भावना के साथ बोलता या कार्य करता है, तो पीड़ा उसका पीछा ठीक वैसे ही करती है, जैसे चक्का गाड़ी को खींचने वाले बैल के पैरों का अनुसरण करता है।

¤ हम अपने विचारो को परखें ताकि हम पाप न करें, क्योंकि हम जैसा करेंगे वैसा ही भरेंगे।

¤ पापी व्यक्ति को पाप मधुरस के समान मीठा लगता है। जो मूर्ख अपनी मूर्खता से परिचित है, वह वहाँ तक तो बुद्धिमान् है। किन्तु जो मूर्ख अपने को बुद्धिमान् समझता है, वह वस्तुत: मूर्ख होता है।

प्रश्न - कष्टों की समाप्ति का रास्ता कौनसा है?

उत्तर - वह आर्य अष्टांगिक मार्ग है, जो दुःखों से मुक्त करता है।

प्रश्न - फिर अच्छा क्या है?

उत्तर - चोरी से बचना अच्छा है, इन्द्रियपरता से बचना अच्छा है, झूठ से बचना अच्छा है, निन्दा से बचना अच्छा है; कठोरता का दमन अच्छा है, बकवाद से बचना अच्छा है; समस्त ईर्ष्या को निकाल देना अच्छा है, द्वेष का निराकरण अच्छा है, सत्यनिष्ठ होना अच्छा है, ये सभी बातें अच्छी हैं।

प्रश्न - और मेरे मित्रो, अच्छाई का मूल क्या है?

उत्तर - इच्छा से मुक्ति ही अच्छाई का मूल है, द्वेष से मुक्ति और भ्रम से मुक्ति, मेरे मित्रो, ये वस्तुएँ अच्छाई का मूल हैं।

प्रश्न - हे भाइयो, फिर दुःख क्या है?

उत्तर - जन्म दुःख है; वार्धक्य दुःख है, रोग दुःख है, शोक और विपत्ति दुःख है, विपदा और निराशा दुःख है, कुत्सित वस्तुओं के साथ संलग्नता दुख है; हम जिससे प्रेम करते हैं उसकी हानि और जिसकी हम आकांक्षा करते हैं उसे पाने की विफलता दुख है। हे भाइयो, ये सारी चीजें दुःख है।

प्रश्न - और दुःख का उद्गम कौनसा है?

उत्तर - काम, वासना और जिजीविषा ही, जो सर्वत्र सुख की कामना करते हैं तथा निरन्तर पुनर्जन्म के कारण होते हैं, दुःख का उद्गम हैं। इन्द्रियासक्ति, इच्छा, स्वार्थपरायणता ये सारी वस्तुएँ हे भाइयो, दुख का उद्गम हैं।

प्रश्न - दुःखों के नाश का पथ कौनसा है?

उत्तर - यह आर्य अष्टांगिक मार्ग ही दुखों के नाश की ओर ले जाता है। हे मित्रो, जहाँ तक एक सदाचारी युवक इस प्रकार दुख को, दुःख के उद्गम को और दुःख से मुक्ति के मार्ग को समझता है और आमूलचूल रूप से वासना वन उच्छेद करता, क्रोध का निग्रह करता, 'मैं हूँ’ के झूठे दर्प का विनाश करता और बुद्धत्व की प्राप्ति करता है, वह इसी जीवन में समस्त दुःखों का अन्त कर लेता है।

 

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