ई-पुस्तकें >> भगवान बुद्ध की वाणी भगवान बुद्ध की वाणीस्वामी ब्रह्मस्थानन्द
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भगवान बुद्ध के वचन
बुराई, अच्छाई और कष्ट
¤ बुद्ध ने कहा - मेरे मित्रो! बुराई क्या है? मेरे मित्रो। हत्या बुरी है, चोरी बुरी है, कामवासना से युक्त होना बुरा है, झूठ बोलना बुरा है, निन्दा करना बुरा है, गाली देना बुरा है, मिथ्या कथन बुरा है, ईर्ष्या बुरी है, घृणा बुरी है, मिथ्या मत का पालन करना बुरा है, मित्रो! ये सारी वस्तुएँ बुरी हैं।
¤ और मेरे मित्रो! बुराई की जड़ क्या है?
इच्छा ही बुराई की जड़ है;
द्वेष ही बुराई की जड़ है,
भ्रम ही बुराई की जड़ है,
ये सभी चीजें बुराई की जड़ हैं। बुरे कार्य को अधूरा छोड़ देना उत्तम है।
क्योंकि एक कुकर्म इस जन्म के बाद व्यक्ति को पीड़ित करता है;
सत्कार्य को पूरा किया जाना अच्छा है, जिसको कर लेने पर बाद में पछतावा नहीं करना पड़ता।
¤ बुराई के बारे में हल्के ढंग से सोचते हुए यह मत कहो कि ''यह मेरे समीप तक नहीं आएगी।'' एक घड़ा भी बूँद बूँद से भर जाता है। इसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति भी थोड़ा-थोडा करके खुद को बुराई से भर लेता है।
¤ जिस प्रकार कम रक्षकों और अधिक सम्पत्ति से युक्त व्यापारी खतरनाक रास्ते पर से जाना छोड़ देता है, या जिस प्रकार जीने की इच्छा रखनेवाला व्यक्ति विष से बचता है, उसी प्रकार व्यक्ति को बुराई से बचना चाहिए।
¤ न तो आकाश में, न सागर के मध्य में और न ही पर्वत की गुफा में घुसने से पृथ्वी का वह स्थल प्राप्त हो सकता है, जहाँ निवास करने से व्यक्ति दुष्कर्म के परिणामों से बच सके।
¤ प्राणियों के सारे कर्म दस बुराइयों से दूषित हो जाते हैं और यदि इन दस बुराइयों से दूर रहा जाए, तो वे अच्छे बन जाते हैं। इसमें तीन बुराइयाँ शरीर की हैं, चार जीभ की और तीन मन की।
¤ शरीर की बुराइयाँ है हत्या, चोरी और व्यभिचार; झूठ बोलना, निन्दा करना, गाली देना और बकवाद करना जीभ की बुराइयाँ हैं, लालच, द्वेष और त्रुटि मन की बुराइयाँ हैं!
¤ मैं तुम्हे दस बुराइयों से बचने की सीख देता हूँ -
1. हत्या मत करो, बल्कि जीवन का सम्मान करो।
2. चोरी मत करो, न लूटपाट ही करो, परन्तु प्रत्येक व्यक्ति को उसके परिश्रम से प्राप्त फल का स्वामी बनने में सहायता दो।
3. अपवित्रता से दूर रहो तथा ब्रह्मचर्य से पूर्ण जीवन व्यतीत करो।
4. झूठ मतबोलो, सत्यवादी बनो। बिना भय किये, स्नेहपूर्ण हृदय से, विवेक के साथ सच बोलो।
5. बुरी खबरों का आविष्कार मत करो और न ही उन्हें फैलाओ। छिद्रान्वेषण मत करो, बल्कि अपने साथियों के शुभ पक्ष का अवलोकन करो, ताकि तुम निष्ठापूर्वक उनकी उनके शत्रुओं से रक्षा कर सको।
6. शपथ न लो, पर चारुता और मर्यादा के साथ बोलो।
7. बकवाद में समय न गँवाओ, पर काम से लगे रहो या चुप रहो।
8. लालच न करो और न द्वेष ही, बल्कि दूसरे लोगों के सौभाग्य पर हर्षित होओ।
9. अपने हृदय को ईर्ष्या से मुक्त करो और अपने शत्रुओं के प्रति भी द्वेष-भाव न रखो, बल्कि समस्त प्राणियों को स्नेहभाव के साथ अपनाओ।
10. अपने मन को अज्ञान से मुक्त करो और सत्य को सीखने के लिए जिज्ञासु बनो। विशेषकर यह एक बात अत्यावश्यक है, अन्यथा तुम नास्तिकता या भूल के शिकार हो सकते हो।
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